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________________ १२ जैन दर्शन और माधुनिक विज्ञान उत्तर मिला—अनामिका। प्राचार्यों ने कहा-यही हमारा स्याद्वाद है जो तुम एक ही अंगुली को बड़ी भी कहते हो और छोटी भी । यह स्याद्वाद की सहजगम्यता है। सापेक्षवाद की भी इस दिशा में ठीक यही गति है । कठिन तो वह इतना है कि बड़े बड़े वैज्ञानिक भी इसको पूर्णतया समझने व समझाने में चक्कर खा जाते हैं। कहा जाता है कि यह सिद्धान्त गणित की गुत्थियों से इतना भरा है कि इसे अब तक संसार भर में कुछ सौ आदमी ही पर्याप्त रूप से जान पाये हैं।' सापेक्षवाद की जटिलता के बहुत से उदाहरणों में एक उदाहरण यह भी है जो साधारणतया बुद्धिगम्य भी नहीं हो रहा है कि यदि दो मनुष्यों की भेंट हो तो उन दो भेंटों के बीच का अन्तर एक ही (समान ही) होना चाहिए-यह एक दृष्टिकोण से सत्य है, एक से नहीं । यह सब इस बात पर निर्भर करता है कि वे दोनों घर पर ही रहे हों या उन में से कोई एक विश्व के किसी दूर भाग की यात्रा करके इसी बीच में प्राया हो। ___ सापेक्षवाद की जटिलता को प्रो० मैक्सवोर्न ने अत्यन्त विनोदपूर्ण ढंग से . समझाया है । वे लिखते हैं—"मेरा एक मित्र एक बार किसी डिनर पार्टी में गया । उसके पास बैठी हुई एक महिला ने कहा--प्राध्यापक महोदय ! क्या आप मुझे थोड़े " शब्दों में बताने का कष्ट करेंगे कि वास्तव में सापेक्षवाद है क्या ? उसने विस्मित मुद्रा में उत्तर दिया-क्या तुम यह चाहोगी कि उससे पूर्व मैं तुम्हें एक कहानी सुना दूं । मैं एक बार अपने एक फ्रांसीसी मित्र के साथ सैर के लिये गया । चलते चलते हम दोनों प्यासे हो गये । इतने में हम एक खेत पर आये । मैंने अपने मित्र से कहायहाँ हमें कुछ दूध खरीद लेना चाहिए। उसने कहा-दूध क्या होता है ? मैंने कहातुम नहीं जानते, पतला और धोला धोला...। उसने कहा-धोला क्या होता है ? मैंने कहा-धोला होता है जैसा बतक । उसने कहा-बतक क्या होता है ? मैंने कहा---एक पक्षी जिसकी गर्दन मोड़दार होती है । उसने कहा---मोड़ क्या होती 1. "It is so mathematical that only a few hundred men in the world are competent to discuss it.' --Cosmology Old and New, p. 127. 2. "If two people meet twice they must have lived the same time between the two meetings” is true from one point of view and not from another. It all depends upon whether both of them have been stay-at-home or one has travelled to a distant part of the Universe and then came back in the interim. -Cosmology Old and New, p. 206. Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002599
Book TitleJain Darshan aur Adhunik Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1959
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Science
File Size7 MB
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