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. . जैन दर्शन और प्राधुनिक विज्ञान दूसरी विचारधारा के लोग जो केवल विज्ञान को कोसने में ही रहते हैं और कहते हैं वास्तविकता का ही दूसरा नाम विज्ञान है। उन्हें भी एक नया सबक उक्त विवेचन से मिलता है। उन्हें भी यह कम से कम मानना ही होगा कि वस्तुस्थिति तक पहुँचने में वैज्ञानिक कितने बद्ध-लक्ष्य होते हैं और असत्य के परिहार और सत्य के ग्रहण में उनकी मनीषा कितनी तटस्थ और तीव्र होती है।
जिस युग में भौतिक साधन-विशेष व तथारूप भौतिक प्रयोगशालायें नहीं थीं, उस युग में तथाप्रकार का तत्त्वनिरूपक अनन्त ज्ञान प्राज के बुद्धिवादी मानव को सहज ही अपने विषय में श्रद्धाशील बना लेता है।
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