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________________ धर्म-द्रव्य और ईयर ... १३७ व हर प्रकार से अन्वेषण-क्रियाएँ कों। दस दिन तक चौबीस ही घण्टों में करीब पाँच हजार बातें नोट की गई और निचोड़ यह निकला कि पृथ्वी और ईथर में सापेक्षिक गति है। वैज्ञानिक जगत् में इस निचोड़ से बड़ी सनसनी फैल गई । क्योंकि माईकलसन मोर्ले की अन्वेषण क्रियाओं द्वारा हमको इस नतीजे पर पहुँचाया गया कि या तो ईथर नाम का कोई पदार्थ ही नहीं है या यह पृथ्वी के साथ घूमता है या यह आकाश में निष्क्रिय पड़ा है। इसके विपरीत मिलर की अन्वेषण क्रियाओं द्वारा ईथर का अस्तित्व बताया गया है और यह प्रमाणित कर दिया गया है कि ईथर का नास्तित्व नहीं है। मिलर की बताई हुई गति का पता लगाने के लिए टोमासक (Tomaschek) ने जर्मनी में सन् १९२५ में बहुत सूक्ष्म प्रयोग क्रियाएं शुरू की। टोमासक के कार्य की अमेरिका स्थित चोज ने पालोचना की और उसने अपनी अन्वेषण क्रियाएँ की, जो कि सन् १९३६ अगस्त फिजिकल रिव्यू (मासिक पत्र) में प्रकाशित हुई कि ऐसी गति का पता नहीं लग सकता । हाल ही में माईकलसन की अन्वेषण क्रियाएँ एक गुब्बारे में जो कि पृथ्वी से लगाकर १३ मील से ३ मील की ऊँचाई पर था, दुहराई गई । परन्तु वैज्ञानिकों की रिपोर्ट है कि वे मिलर की रिपोर्ट को न तो सत्य बता सकते हैं, न असत्य । यू ० एस० ए० के कैनेडे के अन्वेषण द्वारा जो कि सन् १६२६ में प्रकाशित हो चुका है यह माना जा चुका है कि मिलर का नतीजा कई कारणों से सत्य मालूम नहीं होता । प्रसिद्ध शिकागो रोटेशन एक्सपेरिमेण्ट, जिससे पृथ्वी की धुरी की गति का असर रोशनी की गति पर जाना जाता है, के द्वारा कि ईथर निष्क्रिय है; सही माना गया है। ईथर की गति को लेकर इस प्रकार अनेकों प्रयोग हुए पर उनका अन्तिम निष्कर्ष यह निकला कि ईथर में कोई गति है ही नहीं। यह नितान्त निष्क्रिय है । इसकी पुष्टि डी० सी० मिलर के एक लेख से जो कि उन्होंने ब्रिटिश एसोसियेशन के सामने सितम्बर सन् ३३ में पढ़ा और 'नेचर' पत्रिका में ३ फरवरी सन् ३४ में प्रकाशित हुआ था, लिखा है-- "पृथ्वी' की गति एक निष्क्रिय ईथर में से है ऐसा मानने से ही अन्वेषण द्वारा देखे गये फलानुवर्ती परिमाण व दिक् सम्बन्धी परिवर्तन संभव हैं।" सच बात तो यह है--चिरकल्पित ईथर के सम्बन्ध में वैज्ञानिकों की साँप 1. The magnitude and direction of the observed effect vary in the manner required by assumption that the earth is moving through a fixed Ether. Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002599
Book TitleJain Darshan aur Adhunik Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1959
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Science
File Size7 MB
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