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जैन दर्शन और प्राधुनिक विज्ञान सम्भवतः वह कटाक्षपूर्ण हँसी किये बिना न रहेगा। सापेक्षवाद के सिद्धान्त ने विज्ञान में एक नई वात उपस्थित कर दी है। यह जान लिया गया है कि कोपरनिकस के मत में और टोलमी के मत के सम्बन्ध में निर्णय करना अब निरर्थक है । और वास्तव में दोनों के सिद्धान्तों की विशेषता अब महत्त्व नहीं रखती। चाहे हम यह कहें कि पृथ्वी घूमती है और सूर्य स्थिर है या पृथ्वी स्थिर है और सूर्य घूमता है; दोनों ही अवस्था में हम ऐसी बात कहते हैं जिसका कोई अर्थ नहीं। कोपरनिकस की महान् खोज आज केवल इतने ही वक्तव्य में समाने जितनी हो गई है कि कुछ एक प्रसगों में यह अधिक सुविधाजनक है कि नक्षत्रों की गति का सम्बन्ध सूर्य के साथ जोड़ें बनिस्पत इसके कि उसे पृथ्वी के साथ जोड़ा जाय ।"
सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक सर जेम्सजीन्स के शब्दों में उक्त गाणितिक सुविधा का इतिहास यह है-"विज्ञान का इतिहास ऐसी नाना परिस्थितियों को प्रस्तुत करता है जिन पर तर्क-वितर्क होते. रहे हैं । टोलमी और उसके अरब अनुयायियों ने चक्र और उपचक्र (Cycles and Epicycles) का निर्माण किया; और उसके अनुसार वे ग्रहों की भविष्यकालीन स्थिति बताने में सफल रहे ।
१३वीं शताब्दी में केस्टाइल एलफा-जो नामक व्यक्ति ने कहा था कि यदि विश्व की रचना ऐसी जटिल है जैसी कि हम अव तक जान रहे हैं; यदि विधाता उस समय मेरी सलाह लेता तो उसे मैं एक अच्छी सलाह दे सकता था। कुछ समय बाद कोपरनिकस (Copermicus) ने यह माना कि टोलमी का सिद्धान्त इतना जटिल है कि वह सच्चा नहीं लगता । वर्षों के विचार और श्रम के बाद उसने बताया कि ग्रहों की गति अधिक सुगमता से बताई जा सकती है यदि उसकी गति सम्बन्धी भूमिका बदल दी जाये । टोलमी ने पृथ्वी को स्थिर माना था । कोपरनिकस ने सूर्य को स्थिर माना। किन्तु अब हम मानते हैं कि सूर्य पृथ्वी को अपेक्षा अधिक स्थिर एकान्त रूप से नहीं माना जा सकता। जैसे—पृथ्वी सूर्य के चारों योर परिक्रमा करती है ऐसा माना जाये तो सूर्य भी उन लाखों और करोड़ों तारों में से एक तारा है जो सारे मिल कर एक ग्लेस्टिक सिस्टम बनाते हैं और अपने केन्द्र के चारों और एक साथ घमते हैं। इस ग्लेस्टिक सिस्टम का केन्द्र भी स्थिर नहीं माना जा सकता है; क्यं कि लाखों की संख्या में ग्लेस्टिक सिस्टम अाकाश में दिखाई दे रहे हैं जो हमारे ही ग्लेस्टिक सिस्टम के बराबर हैं; और सबके सन ग्लेस्टिक सिस्टम अपने ग्लेस्टिक सिस्टम की अपेक्षा से और दूसरे की अपेक्षा से गति करते हैं। एक भी ग्लेस्टिक सिस्टम स्थिर नहीं है जो सबका केन्द्र या गति का मापदण्ड बन सकता हो । तो भी हम मान लें कि सूर्य स्थिर है न कि पृथ्वी तो बहुत सारी उलझनें दूर हो जाती है। एकान्त दृष्टि में न सूर्य स्थिर है और न पृथ्वी। फिर भी एक दृष्टि से पृथ्वी स्थिर सूर्य के प्रास-पास
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