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सापेक्षवाद के अनुसार भू-भ्रमण केवल सुविधावाद
सूर्य चलता है या पृथ्वी यह प्रश्न आबालवृद्ध सब में प्रसिद्ध है। इस प्रश्न के सामने आते ही हर एक व्यक्ति के हृदय में जिज्ञासा और कौतूहल भर जाते हैं। इस विषय में आदि से अब तक की मान्यताओं का उतार-चढ़ाव किस प्रकार होता रहा है, यह इस प्रस्तुत निबन्ध का विषय है।
जैन-आगम जहाँ तक धर्म शास्त्रों का प्रसंग है प्रायः सभी धर्म शास्त्र एक स्वर हैं—पृथ्वी स्थिर है, सर्य चर है ; चाहे वे धर्म शास्त्र पूर्व व पश्चिम की सीमा में ही क्यों न रहे हों। जैन आगम सूर्य प्रज्ञप्ति सूत्र में सूर्य की चरता का स्पष्ट प्रमाण है । वहाँ गौतम मनि ने भगवान श्रीमहावीर से प्रश्न किया, “भगवन् ! सूर्य अभ्यन्तर मण्डल से निकल कर सबसे अन्तिम मण्डल में जाता है तथा अन्तिम मण्डल से निकल कर अभ्यन्तर मण्डल में चलता है ; तब यह समय कितने रात-दिन का होगा ?" भगवान महावीर ने कहा, "यह समय ३६६ रात्रि-दिन का होगा।" अगला प्रश्न इससे भी अधिक सर्य की गति की ओर संकेत करता है। वहाँ पुनः पूछा गया—"भगवन् ! पूर्वोक्त समय में सर्य कितने मण्डलों में चलता है ; एक बार कितने मण्डलों में चलता है और दो बार कितने मण्डलों में चलता है ?" भगवान् ने कहा, “सामान्य प्रकार से सूर्य १८४
१. ता जया णं ते सूरिए सव्वब्भंतरातो मंडलातो सव्वबाहिरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरति, सव्वबाहिरातो मंडलातो सव्वभंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरति, एस णं श्रद्धा केवतियं रातिदियग्गेणं पाहितेत्ति वदेज्जा ? ता तिण्णि छायट्टे रातिदियसए राति दियग्गेणं आहितेति वदेज्जा । —सूर्य-प्रज्ञप्ति सूत्र, पहला पाहुडा, सूत्र ६ ।
२. ता एताए अद्धाए सूरिए कति मंडलाइं चरति ? कति मंडलाइं दुक्खुत्तोचरति ? कति मंडलाइं एगखुतो चरति ? ता चुलसीयं मंडलसतं चरति, बासीति तं मंडलसतं दुक्खुत्तो चरति, तंजहा, मिक्खमाणे चेव पवेसमारणे चेव, दुवे य खलु मंडलाई सई चरति, तंजहा-सव्वभंतरं चेव मंडलं सव्वबाहिरं चेव मंडलं ॥
-सूर्य-प्रज्ञप्ति सूत्र, पहला पाहुडा, सूत्र १० ।
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