________________
मात्म-अस्तित्व
निकों को स्पष्ट लगने लगा है "संसार में हम ऐसे अजनबी व अचानक प्रा धसने वाले तो नहीं हैं, जैसा हमने पहले सोचा था ।" आगे वे कहते हैं, "अाज हम यह कहने के लिए बाध्य है कि किसे पता है कि ज्ञान की सरिता अब भी आगे चलकर कितने मोड़ खा लेगी। अतः हम कह सकते हैं कि अब तक हमने जो कुछ कहा है, लिखा है, विशेषरूप से रेखांकित किया है, वह सब कल्पना की उड़ान व अनिश्चित है।" प्रस्तु; उपर्युक्त शब्दों से हम सहज ही जान सकते हैं कि वैज्ञानिक अपने निर्णयों में निष्ठा शून्य होते जा रहे हैं। सर जेम्स जीन्स अपनी दर्शन और पदार्थ विज्ञान पुस्तक के उपसंहार में लिख देते हैं, "विज्ञान के उन्नीसवीं शताब्दी तक के बहुत सारे निर्णय रद्दी के कटाह (Melting pot) में आ गये हैं।” अस्तु; यह ऐसी बात नहीं है कि कोई एक प्राध ही छुटक वैज्ञानिक जड़वादी जगत् में अध्यात्मवाद की बात कहने लगा हो बल्कि वस्तुस्थिति और भी आगे बढ़ गई है।
विभिन्न वैज्ञानिकों के प्रात्मा-विषयक विचार "मैं जानता हूँ कि सारी प्रकृति में चेतना काम कर रही है।"
-प्रो० अलबर्ट आइंस्टीन __ "कुछ अज्ञात शक्ति काम कर रही है, हम नहीं जानते वह क्या है ? . . मैं चैतन्य को मुख्य मानता हूँ, भौतिक पदार्थ को गौण । पुराना नास्तिकवाद अब चला गया है। धर्म आत्मा और मन का विषय है और वह किसी प्रकार से हिलाया नहीं
____l. We are not so much strangers or intruders as we at first thought.
-Mysterious Universe, p. 138. 2. So at least we are tempted to conjecture today, and yet who knows, how many more times the stream of knowledge may turn on itself ?.........What might have been interlined into every paragraph that every thing that has been said, and every conclusion that has been tentatively put forward is quite frankly speculative and uncertain.
-Mysterious Universe, p. 138. 3. Many of the former conclusions of nineteenth century science are once again in the melting pot.
-Physics & Philosophy, p.217. 4. I believe that intelligence is manifested throughout all nature.
-The Modern Reveiw of Calcutta, July 1936.
Jain Education International 2010_04
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org