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________________ जिणनिव्वाणवण्णणं ४९० जे पुण निव्वाणगया, मरणं पि महूसवो तेसि ।। १३५६ ।। एवं सक्कगिराए, एसो मंदायमाणमहिमम्मि ।।। किंकरगणेहिं सक्को, आणावइ नंदणाहिंतो ।। १३५७ ।। घणसारअगुरुनियरं, कारइ तत्तो चियाण संदोहं ।। खीरोयजलवरेणं, कुणइ सिणाणं च जिणतणुणो । १३५८ ॥ गोसीसचंदणेणं, काऊण विलेवणं च सुरनाहो ।। पहुदेहं परिहावइ, सुहुमेहिं देवदूसेहिं ।। १३५९ ।। मणिमाणिक्कविभूसण-निवहेहिं भूसए तह सक्को। सेसा कुणंति तियसा, ण्हवणाई साहु-देहाणं ।। १३६० ॥ पहुपयपंकयजुयले, पणमिय सक्को जिणस्स तं देहं ॥ नरसहस्सवाहिणीए, आरोवई रयणसिवियाए ।। १३६१ ॥ सेस मुणिदाहनिवहं, सेस सुरा निक्खिवंति सिबियासं ॥ सयमेव सामि वि सयं, सक्को उप्पाडए तइया ।। १३६२ ।। उक्खित्ता सिवियाओ, अवरा अवरेहिं तियसनिवहेहिं ।। सिवियाण पुरो रम्म, कुणंति संगीय अमरीओ ॥ १३६३ ।। तालारासे काउं वि, कुणंति सिवियाणमुवरिकुसुमाणि ॥ मुंचंति काउ काउ, विसेसं गिण्हंति कुसुमाइं ॥ १३६४ ॥ तियसा लुलंति के वि हु के वि हु मुच्छंति के वि विलवंति ।। हा नाह, नाह ! संपइ, हयह इमाइ जंपंता ।। १३६५ ।। अंधा जाया अम्हे खीणो अम्हाण पुन्नपन्भारो ।। हे धरणि देहि विवरं, झड त्ति सुम्मति सुरसदा ॥ १३६६॥ तुरेसु वज्जिरेसुं, गिज्जंतेसुं च सामिचरिएसं॥ सिवियाओ नीयाओ, ताओ चियाणं समीवम्मि ॥ १३६७ ।। खित्तो जयगुरुदेहो, चियाइ सक्केण सेससमणाणं ॥ अवसेसासु चियासुं, देहा खित्ताय तियसेहिं ।। १३६८ ॥ सक्कस्स समाएसा, अग्गिकुमारो चियासु तो जलणं ।। ___Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002597
Book TitlePaumappahasami Cariyam
Original Sutra AuthorDevsuri
AuthorRupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1995
Total Pages530
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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