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________________ ४८१ धनसेनकहा तो तस्स पहावेणं, खुज्जा ओयरिय चित्तभित्तीए ।। मुंचेइ रयणमालं, पुणरवि वच्चइ नियं ठाणं ॥ ११८४ ॥ तं झत्ति चित्तसालं, सज्जंती पिच्छिऊण से भज्जा ।। सद्दाविऊण साहइ तं, सव्वं नियय नाहस्स ॥ ११८५ ॥ पावाण य पुन्नाण य, विलसियमेयं इमस्स धुवमेयं ।। चिंतित्तु तेण भज्जा, निवारिया कहसु मा कस्स ।। ११८६ ।। भुत्तुत्तरम्मि एसो, धणसेणेणं पयंपिओ मज्झ ।। भायासि तओ तुज्झवि, अकहित्ता तम्मि दियहम्मि ॥ ११८७ ।। मणिमाला संगहिया, मए तो तीए असममाहप्पा ।। इत्तियमित्तो सव्वो, समज्जिओ विहववित्थारो ।। ११८८ ॥ नियमणिमालं एयं, तत्तो गिण्हेसु जंपिउं एवं ॥ सा मणिमाला तेणं, समप्पिया तस्स वणियस्स ।। ११८९ ।। सो चिंतइ पिच्छ अहो, माहप्पमिमस्स पुरिसरयणस्स ।। संपइ मह भज्जाए, सच्चविया सा वि मुच्चंती ॥ ११९० ।। तइया इमेण दिट्ठा, गिलिज्जमाणा य तह य नवि एसो॥ निय महिमाए असंभविवत्थु परिजंपए कहवि ॥ ११९१ ।। निय अच्छिपिच्छियं पि हु पइट्ठमसमं समीहमाणेहिं ।। नेव असद्दहणिज्जं, कहणिज्जं गरुयपुरिसेहिं ।। ११९२ ॥ उक्तं च :अश्रद्धेयं न वक्तव्यं, प्रत्यक्षं यदि दृश्यते ॥ तथा वानरसंगीतं, तथा तरति सा शिला ।। ११९३ ।। इय नियमेण विभाविय, सो पभणइ भाउणो वि निययस्स ॥ किं कुणसि विप्पयारणमसच्चमेयं पयंपंतो ॥ ११९४ ।। इज्जाइ जंपिऊणं, सुदंसणेणं इमस्स सव्वो वि ।। निय भज्जा सच्चविओ, वुत्तंतो साहिओ सम्मं ।। ११९५ ।। धणसेणो वि हु सव्वं, जहट्ठियं चेव तस्स कहिऊणं ।। Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002597
Book TitlePaumappahasami Cariyam
Original Sutra AuthorDevsuri
AuthorRupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1995
Total Pages530
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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