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सिरिपउमप्पहसामिचरियं
उप्पन्नं वरकेवलनाणं, सो कुमर ! अहमेव ।। ९१७ ।। तत्तो कुमार ! जइ तं, बीहसि भवअंधकूववडणाओ ।। तत्तो जिणिददिक्खं, गिण्हसु जइ महसि सिवसोक्खं ॥ ९१८ ।। कुमरो जंपइ भयवं, नाहं तुह चरणरेणुसरिसो वि ॥ तो मह गिहत्थधम्मं, वियरसु सम्मं असेसं पि ।। ९१९ ।। तो सीहमुणिवरेणं, वसंतकुमरस्स बारसविहो वि ।। दिनो गिहत्थधम्मो, विहिणा सम्मत्त संजुत्तो ।। ९२० ।। पडिवज्जिऊण कुमरो, गुरुपयमूले गिहत्थवरधम्मं ।। रणरंगमल्लसहिओ संपत्तो तम्मि भुवणम्मि ॥ ९२१ ॥ सीहो होऊण मुणिनाहो, जणमणपंकयवयणाणि बोहंतो । मोहंधयारहरणो, निहरइ विविहेसु देसेसु ॥ ९२२ ।। अरोवियमणिनिम्मियमेसो कुमरो विमाण मइरम्मं ॥ नियनयरम्मि विमुक्को, सहसा रणरंगमल्लेण ॥ ९२३ ॥ कुमरं निरिक्खिऊणं, पहरिसवसगलिरनित्तनीरोहो ॥ परिरंभइ सारंभं, राया रोमंचियसरीरो ॥ ९२४ ।। रणरंगमल्लवंतर-परिकहिए कुमरचरियवुत्तंते ।। रायप्पमुहो लोओ सव्वो वि हु विम्हिओ जाओ।। ९२५ ।। सिद्धंतसिद्धविहिणा, परिवालितो गिहत्थधम्मं सो । समयंतरम्मि गेण्हइ, कुमरो देसावगासिवयं ॥ ९२६ ।। एगाए रयणीए, इमाउ अपवरयमज्झ देसाओ । कह वि हु निग्गंतव्वं न मए जा उग्गए सूरो ।। ९२७ ॥ सुरकेसरिणा वंतर-सुरेण नाऊण वइयरं एयं ।। कुमरवयभंगकज्जे, पारद्धा विविहउवसग्गा ।। ९२८ ।। कुमरस्स तुरयरयणं, पढमं सो हरइ तयणु सव्वेहिं ।। उच्चसरमिक्कसरियं, पुक्करियं जामइल्लेहिं ॥ ९२९ ।। हं हो सुहडा सुहडा, पहरह पहरह तुरंगमं हरिउं ।।
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