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चंद्रलेहाकहा
पारद्धं संगीयं, असंभवं सग्गलोए वि ।। ६७५ ।। सा जोगिणी वि तीसे, आसीसं परिचिय व्व पयडित्ता ॥ विहियपणामा तीए, महरिहसीहासणे विसइ ॥ ६७६ ॥ नाऊण निवं पत्तं तह ताहि वि विविहभंगिमणहरणं ॥ संगीयं निम्मवियं जह रयणी विगलिया सव्वा ।। ६७७ ।। दिवसे वि जाममित्ते वक्कंते तं विसज्जियं गीयं ॥ तस्सा संकेयवसा, अइदिव्वा रसवई पत्ता ॥ ६७८ ॥ चाउज्जयगमीसियपेऊसद्वारसं वंजणसणाहा ॥ वरकमलसालिमोयगमुरुक्कियामंडिया जुत्ता ॥ ६७९ ॥ सा जोयणी पपड़, किं कज्जं चइय णायपहुरज्जं ॥ पायालयकामिणिसामिणि इह तंसि संपत्ता ।। ६८० ॥ अविरलगलंतनेत्ता दीहं नीससिय जंपए एसा || जाणसि तुमं पि पट्टो मह चेव इमस्स सुद्धंते ॥ ६८१ ॥ किं तुह किंकरीसुं, कुसला वीणाए वाइणी एसा ॥ निय मित्तस्स निमित्तं, पूयाणंदाभिहाणस्स ॥ ६८२ ॥ धरण मग्गिया विहु मए वि संगीयभंगभीयाए || नो अप्पिया तओ सो भाइ हढेणावि गिहिस्सं ॥ ६८३ ॥ अवमाणगहियहियया, ता हं रूसित्तु एत्थ संपत्ता ॥ विहियवररयणभवणा, चिट्ठेमि इहेव अइसुहिया ॥ ६८४ ॥
महावं, अर्चितसामत्थमंतमाहप्पा ॥ जह सो कह वि न याणइ मह ठाणं इह पएसम्म ॥ ६८५ ॥ इच्चाई जंपमाणी, हत्थे गहिऊण जोइणि झत्ति ॥ पत्तो भोयणभवणे, निज्जियनीसेससुरभवणे ॥ ६८६ ॥ सायरमेसा पण बहुहिं दिवसेहिं मज्झ मिलियासि ॥ तो अज्ज मए सद्धि भुंजसु एगम्मि थालम्मि ॥ ६८७ ।। आमंति तीए भणिए, महमहिया मोयगंति अग्घाणं ॥
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