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________________ ३८२ सिरिपउमप्पहसामिचरियं अहवा साहसरसिओ अतिही तह पुन्न-पन्न-संभारो । तम्हा इमस्स वयणं, इक्कं मन्नेमि किं बहुणा? ॥ २०५६ ।। इय चिंतिय कुमरपए सघय-पएण मुहुत्तमिक्कं सो ।। तलहट्टइ पुन्नाणं, नेव असझं जए किंचि ।। २०५७ ।। तं नियपाय-विलग्गं, निसियरनाहं पलोइउं कुमरो ।। अब्भुट्ठिऊण सहसा, जंपइ काऊण पणिवायं ।। २०५८ ।। हे सुपुरिस ! तुह भवणे सुत्तोहमतुल्लमुल्ल-पल्लंके ।। विहिया य तुह अवन्ना, जं तं सव्वं खमिज्जासु ।। २०५९ ॥ जुव्वण-दुल्ललिएणं, धिट्टेणं मूढबुद्धिणा अहवा ।। तुज्झ अवन्ना विहिया, न मए बलगव्वगहिएण ॥ २०६० ।। ता रक्खससिरसेहर ! महिमाए तुज्झ महिय-चित्तोहं ।। आइससु तओ संपइ कज्जं दुस्सज्झमवि मज्झ ।। २०६१ ।। भणियं च रक्खसेणं, कुमार ! सयले वसुंधरा वलए ।। सो नत्थि च्चिय इह जो अत्थिजणं कुणइ सकयत्थं ॥ २०६२ ।। हत्थं आगच्छं ता गुणमुक्का जायणिक्कवावारो।। मग्गणगण व्व मग्गण-पुरिसा न हि कस्स भयजणया ।। २०६३ । सीसम्मि तस्स निवडउ वज्जजीहा वि जाउ सयखंडं। जो परपत्थणपावं, करेइ लज्जमज्जाओ ।। २०६४ ।। धूलीपुंजाहि समीरणाहि, तूलाहि तह तिणाहिंतो ।। अत्थी लहू तओ वि हु हीणो जो तं कुणइ विहलं ।। २०६५ ॥ तह वि तह कुमरपुरओ करेमि अब्भत्थणं अहं किं पि । जइ मह भणियं न कुणसि अपमाणं तं जुगंते वि ।। २०६६ ॥ कुमरेणुत्तं विक्कम-मइ-धण-संभार-देह-पाणेहिं ॥ जं साहिज्जइ कज्जं, निब्भंतं तं मए कज्जं ।। २०६७ ।। सो रक्खसो पयंपइ, जइ एवं तो इमम्मि नयरम्मि ।। हवसु तुमं चिय राया तत्तो जुग्गो तुमाहितो ।। २०६८॥ Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002597
Book TitlePaumappahasami Cariyam
Original Sutra AuthorDevsuri
AuthorRupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1995
Total Pages530
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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