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________________ ३३६ अकलंक- सोम-मुत्ती सोमं आजम्ममप्पमत्तो य । भाडपक्खी जुलं वि विगयमलमाणसो निच्चं ॥१ ४६७॥ सेवालकलुसमाणसनीरं अमरत्तमित्तिसु निमित्तं । अमयं सिव-सुह-कारणवयणामयदाणदुल्लहिओ ॥१ ४६८।। हा सविरओ वि पायं निम्मल - नियदंतदित्ति छउमेण । निच्चं पि उवहसंतो पत्तो चारणमुणी एगो ||१ ४६९।। ( चतसृभिः कलापकम् ) अब्भुट्ठाणं सम्मुहगमणं सीहासणाइसम्माणं । तस्स य विहियं रत्ना विणओ गरुयाण सह सिद्धो || १४७० ॥ जाए कहापसंगे मुणिनाही तेणमवणिनाहेण । वित्तो सप्पणयं भयवं ! साहेसु किं तत्तं ॥ १ ४७१ ।। सो आह हे नरेसर ! पमाय-मइराए मत्त - चित्तस्स | रायस्स इमं चेव य कहणिज्जं सक्कणिज्जं च ॥ ४१७२ ॥ जीवाणमभयदाणं दाणं साहम्मियाण लोयाणं । बिंबाण पइट्ठाणं अणुजाणं रह - समूहस्स ॥१४७३ ।। विविह-मणि - रयण-कंचण - निम्मिय- मई मित्त- मत्तवारयणं । सिहरसयरुद्धनहयलमग्गं कज्जं च जिणभवणं ॥१४७४ || इच्चाइ मुक्ख-मग्गं पयडं पयत्ति नरवरिदस्स । पत्तो निरीहचित्तो एसो देसंतरे सहसा || १४७५ ।। राया चिंतइ चित्ते नूणं न पुरम्मि मज्झ जिणभवणं । अच्छरय सयाइत्तं विज्जइ ता कारविस्सामि ॥१४७६ ॥ भवणविहिबद्धचित्तो वद्धरणो आहवित्त नरनाहो । कारावर जिणभवणं भवणं अच्छरियलच्छीए ॥१४७७॥ सिवभमणसमारोहणबंधुरसोवाणमालियाबंधो । भवजलहि- सेउ-बंधो पासाओ कारिओ रम्मो ॥। १४७८ ॥ सिरिपउमप्पहसामिचरियं Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002597
Book TitlePaumappahasami Cariyam
Original Sutra AuthorDevsuri
AuthorRupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1995
Total Pages530
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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