SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 343
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३१४ वर - सुहड सहसवरिओ सो वि हु तरुणिं हरित्तु नीहरिओ | पवहण - सयसामग्गी सामिय ! न हु हवइ सहसति ॥ ११८७ ॥ विम्हय-विसायकलसं रसंतरं जाव सयलपुरलोओ । अणुहवमाणो चिट्ठइ इह किं कायव्वया मूढो ॥११८८ ।। ताव सहस त्ति तेहि वि पयडंतो केवलिस्स आगमणं । वर - अमर-नियर - ताडिय - दुंदुहि - सद्दो तहिं निसुओ ॥११८९ ॥ राया चिंतइ सुद्धिं केवलिपासम्मि निययदइयाणं । पुच्छेमि ताव पच्छा जं होही तं करिस्सामि ॥११९०॥ उज्जाणे संपत्तं राया पुच्छे झत्ति केवलणं । किं नाह ! हिययदइया कइया वि मिलिस्सए मज्झ || १९९१ ॥ सो केवली पयंपइ नरवइ ! जम्मंतरे वि सा पावा । न हु मिलिही मह वयणं उवविसिय सुणेस एगमणो ॥ ११९२ ॥ नरनाहो मुणिनाहं विहिणा पणमित्तु उचियदेसम्मि । उवविसइ सेसलोओ तहेव पणमित्त उवविट्ठो ॥११९३॥ अह तीए भाविचरियं, केवलनाणी कहेइ सा तेण । मिलिया जा छम्मासं, गच्छिस्स विविहदीवेसु ॥११९४ ॥ इत्तोय अत्थि मित्त, अणंगदेवस्स काण - वीभच्छो । निय महुरसरविनिज्जिय किन्नरकंठो सुकंठु त्ति ॥११९५ ।। अह देवरसंबंधा, करिही हासाइयं इमा तेण । नारीण महव तत्तं, पायं नियाणुगामित्तं ॥ ११९६ ॥ वर - र - महुर - गीय-लुद्धा, सह तेण निकाम-काम - रायंधा । वंचित्तु सत्थवाहं, सा असइ धुरंधरा रमिही ॥ ११९७॥ सा चिंतिस्सइ होही, न हु इमिणा अभय - महुरसद्देण । सच्छंदसुरयसुक्खं, जीवंते सत्थवाहम्मि ॥११९८॥ भाडयमुल्ले पुन्नेव खरवत्युं खिवे जह पुरिसो । तह सा निसीहसमए खिवही जलहिम्मि सत्थाहं ॥११९९॥ Jain Education International 2010_04 सिरिपउमप्पहसामिचरियं For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002597
Book TitlePaumappahasami Cariyam
Original Sutra AuthorDevsuri
AuthorRupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1995
Total Pages530
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy