________________
(जालिहरगच्छीय सिरिदेवसूरिविरइयं)
सिरिपमध्यहसामिचारिय मंगलमंगलमाइ-जिणेसर-भुय-दंड-लुलंत-कुंतला दिंतु ।। जियमोह-हरिय-सामल-मिलंत-चमर व्व विलसंता ॥९॥ निच्चं निच्चल-चित्ता, जं पत्ता सह निवासपउमेण । लंछण-छलेण पउमा, पउमंकं नमह तं देवं ॥२॥ सो जयउ संतिनाहो, अप्पडिचक्केहिं दोहि चक्केहिं । जस्स नव-कुंडलेहिं व, महि-महिला गव्विरी भुवणे ॥३॥ जयउ नव-मेह-सामलतणुणो नेमिस्स दित्ति-पब्भारो । आजम्मदद्ध-वम्मह-धूम-समूह व्व विलसंतो ॥४।। नव-हत्थ-काय-महि-भय-हरणं कुवलय-फुरंत-वरवन्नं । गय-रयममोहनामं, नमामि देवं दुहा पासं ॥५॥ मोत्तूण पुरं पुरिसा जस्स सुसिद्धंत-सिद्धमतेण । पविसंति सिवपुरवरे, तं वीरं नमह जोइंदं ॥६॥ अवसेसजिणिंदाण वि, सुर-असुर-नरिंद-चंदभालेसु चूलामणि व्व कम-नह-किरणा विजयंतु दिप्पंता ॥७॥ उवसग्ग-वग्ग-तक्करनिव्वासण-चंड-डिंडिम-समाणा । जयउ जिणवयण-निग्गय-जोयण-निहारिणी वाणी ॥८॥ भरहाइसव्वखित्तेसु, जस्स पसाएण निच्चमभविंसु । होहिंति हुंति तित्थंकरा वि विजियाय सो संघो ॥९॥ अट्ठावय-वर-पव्वय-सिहरगयं तह य भमण-परिमुक्कं ॥ अहिणव-रविमिव सिरसा, गोयम-गणहारिणं नमिमो ॥१०॥ जायं मह मणगहणं, सवियासं जेसिमसममाहप्पा । गुरुणो जयंतु ते मह, हिययवसंता वसंत व्व ॥११॥
Jain Education International 2010_04
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org