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________________ धर्मोपदेश के बाद अपराजित राजा द्वारा आचार्य से अपनी दीक्षा का कारण पूछना और अन्तरंग कथा द्वारा आचार्य का अपनी आत्मकथा द्वारा दीक्षा का कारण बतलाना ... ...... १३६ राजा अपराजित द्वारा धर्मेपिदेश से प्रभावित होकर उत्तम आचार धर्म के पालन की प्रतिज्ञा १६४ पिहिताश्रव मुनि के पास अपराजित राजा का दीक्षाग्रहण,.......... ...... १६४ तीर्थकर नाम कर्म उपार्जन करने वाले कतिपय स्थानों की आराधना, .............. ....... १६४ अन्तिम समय में पंच परमेष्ठि मंत्र की आराधना के साथ समाधि पूर्वक मृत्यु.... .................... १६४ द्वितीय देव भव ३१ सागर की आयुवाले उपरिम उपरिम ग्रैवेयक में महर्धिक देव रूप से उत्पत्ति. १६४ १६७ १६८ द्वितीय प्रस्ताव - तृतीय भव प्रद्मप्रभस्वामी के रूप में जन्मकोशाम्बी नगरी का वर्णन ......... राजा धर का वर्णन ............ महारानी सुसीमा का वर्णन ..................... ससीमा रानी का १४ स्वप्न दर्शन.. रानी का राजा को स्वप्र कथन .. स्वप्न पाठकों को बुलाना और उनसे स्वपों का फल सुनना, प्रीतिदान पूर्वक स्वप्न पाठकों की बिदाई ........ भ. पद्मप्रम का चवण कल्याणक ........... भ. पद्मप्रम का जन्म कल्याणक .............. दिशाकुमारी कृत जन्म महिमा इन्द्रादि देवो का जन्मोत्सव के लिए मेरु पर्वत पर गमन. राजा धर द्वारा भ० पद्मप्रभ का जन्मोत्सव और नाम करण ............ भ. पद्मप्रभ का विवाह, पुत्रोप्तत्ति, तथा राज्यारोहण ...................... भगवान प्रदमप्रम का महानिष्क्रमण .......... भ. प्रद्मप्रम का केवलज्ञान, तीर्थस्थापन और प्रथम धर्म देशना .................. प्रथम धर्प देशना में निर्मल चारित्र पर हरिवाहण राजकुमार की कथा................... १६९ १७० १७१ १७३ १७४ १७६ १७७ १८१ तृतीय प्रस्ताव - सम्यक्त्व पर प्रज्ञाकरमंत्रिपुत्र की कथा .... श्रावक के बारह व्रत का कथन २२२ २३३ Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002597
Book TitlePaumappahasami Cariyam
Original Sutra AuthorDevsuri
AuthorRupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1995
Total Pages530
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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