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सिरिपउमप्पहसामिचरियं
भोगंगसाहणाई साहितं गंधकारियावग्गं । सम्माणंती सुसिणिद्धदिट्ठिदाणप्पसाएण ॥२८४॥
अग्घायंती कोमलकरकलियं गंधबंधुरं कमलं ।। हिट्ठा मग्गाभिमुहं खिवमाणी अंतरादिठिं ॥२८५।। जा चिट्ठइ ता तीसे सहस च्चिय दिट्ठिगोयरे पडिया । मज्झिम वयदेसीया रमणी रमणीय रूवधरा ॥२८६॥ उइंडदंडलट्ठी लउडयहत्थेहिं किंकरगणेहिं । अइदीणा निज्जती वाहसमुहेहिं हरिणी व्व ॥२८७।। आ पावे अम्हेहिं बहुयं तुह दइयमंदिरे निसुयं । तं कस्स घरे दिव्वं सव्वं चिय खिवसु पक्खित्तं ॥२८८॥ पाविट्ठि ! तुम मुच्चसि जइ अप्पसि नियनिहाणठाणाणि । अनह गुत्तिहरि च्चिय कुहिया मरिहेसि निब्भंतं ।।२८९।। इय पंचउलनरेहिं कन्ने होऊण पत्रविज्जती । वाहजलाविलनयणा सम्मं मग्गं अपिच्छंती ॥२९०॥ तं तह दट्टुं देवी चिंतइ चित्तम्मि का इमा रमणी । कुट्ठारधरणगेसुं, खिप्पइ केणावराहेण ॥२९१॥ अहहा मरइ वराई, पडिया पावाण विसयमेएसिं । छुह-दुह-करालियाणं, सीह-किसोराण सुरहि व्व ॥२९२॥ इय भावपरवसाए, करुणारस-सिढिल-सयल-देहाए । देवीए करयलाउ, कमलं तिस्सा सिरे पडियं ॥२९३॥ तीए वि उद्धमुहीए, पडियाए दुरंत-वसण-जलहिम्मि । नियड-तडभूमि-सरिसा, दिट्ठा लीलावई देवी ॥२९४॥ अनुन्न-दिट्ठि-मिलणे, दासिं संपेहिऊण देवीए । सा वलिया दीणमणा, आणविया नियय पासम्मि ॥२९५॥ दासिमुहेण किंकरपुरिसा, पुच्छाविया य देवीए । रे रे किं कज्जमिमासु, होइ या पाविया दुक्खं ॥२९६।।
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