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बीओ भवो
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बीओ पत्थावोपउमप्पहजिणिंदस्स बीइय-तइय-भवो तित्थंकर-सिद्धाणं, सूरि-उवज्झाय-सव्वसाहूणं । परमिट्ठीणं नमिमो, मंगल-निलयाण पंचण्हं ॥१॥ भणिओ पढमो जम्मो, जय-पहु-पउमप्पहस्स देवस्स । इण्हिं दुइयं तइयं, कहेमि जम्मं निसामेह ॥२॥ अहमिंदा तत्थ सरा, इंदो न ह को वि तेस कप्पेस । उववन्ना तत्थ सुरा, कस्स वि न कुणंति पेसत्तं ॥३॥ महरिसि-तवमाहप्पा, जम्मंतर-निबिड-नेहओ अहवा । जिण-कल्लाण-महे वा, न ह ते इह इंति कइया वि ॥४॥ ते तत्थ निच्चसहिया, विवज्जिया रोय-सोय-पमहेहिं । मणि-सयण-समल्लीणा, गयं पि कालं न याणंति ॥५॥ भव-जलहि-मज्जणाय-सबेडाणं कूड-कवड-पेडाणं । नव-नव-भय-भीयाणं, मुसाइ-बहु-दोस-कोसाणं ॥६॥ घोरंधयार-नारय-मग्ग-अनिव्वाण-हत्थ-दीवाणं । गहिलाण मणहराणं, न तत्थ नाम पि महिलाणं ॥७॥ कामाउराहि निच्चं, तहविह-कप्पोववन्न-देवीहिं ।। ते खल अणंत-सोक्खा रागाइविवज्जिया पायं ॥८॥ उक्तं च - जं च काम-सुहं लोए, जं च दिव्वं महासुहं । वीयराय-सुहस्सेयं, अणंतभागं न अग्घइ ॥९॥ जं लहइ वीयरागो, सुक्खं तं मुणइसु च्चिय न अनो। नहि गड्डा-सूयरओ, जाणइ सुरलोइयं सुक्खं ॥१०॥ अपराजिय-निव-जीवो, उववव्रो तत्थ नियय-पुत्रेहिं । दुह-लेस-मुक्क-सुक्खं, अणुहवमाणो गमइ कालं ॥११॥
॥ समत्तो दुइय भवो ॥
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