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________________ अंतरंगकथा १६३ कारइ पूयइ संघ, चउव्विहं भत्तिसंजुत्तो ॥११॥ उज्जाणं गंतूणं, पिहियासवसूरिपाणिकमलेण । सिद्धंतसिद्धविहिणा, सो राया गिण्हए दिक्खं ॥१२॥ निच्चं स पच्छाभिमुहो, विहगो विव पंजराउ परिमुक्को । बाणु व्व धणुहमुक्को, सो गच्छइ सूरिणा सद्धिं ॥१३॥ गहिऊण दुविहसिक्खं, उवंगसहियाणि निच्चमुज्जुत्तो । एक्कारस अंगाई, अहिज्जए सूरिपासम्मि ॥१४॥ समयंतरम्मि पुच्छइ, भयवं ! साहेसु कित्तिया ठाणा । तित्थयरत्तनिमित्तं ? तत्तो सूरी पयंपेइ ॥१५॥ . तित्थयरत्तनिमित्तं, वीसं ठाणा जिणेहिं पन्नत्ता । तेसिं सरूवमिण्डिं संखेवेण सुणसु वोच्छं ॥१६॥ वच्छल्लं कव्वंतो, अरिहंताणं तिलोयपज्जाणं । पढमं ठाणं जीवो, फासेइ तित्थयरनामस्स ॥१७॥ तह सिद्धाणं कणंतो, बीयं ठाणं त फासए जीवो । तइयं संघस्स तहा, पवयणमवि अवरनामस्स ॥१८॥ धम्मोवएसयाणं, चउत्थठाणं, गुरूण वच्छल्ले । थेराणं वच्छल्ले, ठाणं फासेइ पंचमए ॥१९॥ जम्मेण सट्ठिवरिसा, सएण समवायधारया थेरा । दिक्खाए वीसवरिसा, तिविहा थेरा इमे भणिया ॥२०॥ सत्तत्थोभयबहसयधराण वच्छल्लयम्मि तह छठें । सत्तमट्ठाणं भणियं, वच्छल्लेणं तवस्सीणं ॥२१॥ वण्णप्पयडणपूया भत्ती चाओ अवनवायस्स । आसायणपरिहारो, अरिहंताईण वच्छल्लं ॥२२॥ अणवरयं तह नाणोवओगकारिस्स अट्ठमं ठाणं । अइयारमक्कदंसणधरस्स नवमं विणिद्दिढें ॥२३॥ अइयाररहियविणयं, पउंजमाणस्स दसममिह भणियं । सुद्धावस्सयपालणपरस्स इक्कारसं ठाणं ॥२४।। Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002597
Book TitlePaumappahasami Cariyam
Original Sutra AuthorDevsuri
AuthorRupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1995
Total Pages530
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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