SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 357
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३३० मणोरमा कहा अहावरे सत्तमे पावट्ठाणे से णं माणे तेण वि अहिट्ठिए पुरिसे अलसं पि दक्ख, निरक्खरं पि वियक्खणं, किविणं पि महादाणवई. कायरं पि परमसहडं. कुरुवं पि रूवस्सिणं, किलिटठपयंपि परमर्धा णीयं, कुसीलं पि सीलसालिणं, निग्गुणं पि सव्वगुण रयणायरं अप्पं मण्णेइ । तहाभूए य न नमइ नमणीयाणं पि, न सिक्खइ सिक्खायरिएहितो, न पुच्छइ हेउवाए य विभाग, पुच्छणिज्जे वि न सुणेइ विसिट्ठोवइटें पि केवलं अहमेव निउणो, अहमेव विण्णाणवं, अहमेव लोयट्ठि पत्तट्ठो, अहमेव लद्धसमत्थपरमत्थवित्थरे त्ति कटु वुसं व बंधुणो वि, तणमिव पणइवग्गं पि, धूलिमिव विसिट्ठगोठि पि, अक्कतूलमिव गुरुजणोवएस पि मण्णमाणे माणुद्धरकंधरे धरावलए वि न माइ से वराए । अवि य-- माणमहागहगहिओ जसं च कित्ति च अत्तणो हणइ । थद्धत्तणदोसाओ जायइ अवहीरणा ठाणं ।१०९१ । जह जह कीरइ माणो नरेण तह तह गुणा परिगलंति । गुणपरिगलणेण पुणो कमेण गुणविरहियत्तं से ।१०९२। गुणसंगणं रहिओ पुरिसो धणुहं व विगयटकारो । साहइ न इच्छियत्थं उत्तमवंसप्पसूओ वि ।१०९३। जइ कित्तीए कज्ज अस्थि विणयकम्मेण । सत्तम पावट्टाणं माणं मल्लह तो दूरे ।१०४। ____ अहावरे अट्ठमे पावट्ठाणे से णं माया एसा वि कहं न पावट्ठाणं भविउमरिहइ जा पयंड-दंडाहय-भुयंगि व्व पयडिय-कुडिलत्तणा, मइरा व पयइविवज्जास कारिणी, चित्तभित्ति व्व पयडियाणेगरूवा, नट्टनिउणनट्टिगा व विविहभावदंसिगा, महिसीव कलुसीकय-चित्तपल्ललजला, दुस्सीलमहिलिय ब्व अविवेगिजणचित्तचारिणी, असिपुत्तिगा व परछिण्णणेक्कवावारा, जलंतदीववट्टि व्व पउज्जतनेहक्खयंकरी, कुसि व्व संपत्तभूमिगापाडण-पहुया, वंस-जालि व्व अच्चंतगुविला, चित्तयर-कलेव चित्तभेयनिम्माविया, गुंजा व दाविय बहुतराणुरागा वि पज्जंतकलुसा, जीए सग्गापवग्गमग्गग्गलाए, कुगइगमणपवणपयवी कप्पाए, []विस्सास[स्स] निप्फत्तिपवरभूमीए, अहिट्ठिए पुरिसे, मरूकवए व्व अंतो तामस-सरूबे, भूयंगमे व्व परछिद्दगवेसी, मीढसिंगे व्व सहावकुडिले, लेहवाहगे व्व बहुमग्गचारी, दुरहीय-तक्क-सत्थे ब्व कुवियप्पकप्पणापरायणे, दुस्सिक्खिय-लक्खणे व्व अगणियावसहप्पओगे, विसतुंबयं व बाहिं लण्हे अंतो विसभरिए। संखे व्व अच्चंतकुडिलमज्झे वि बाहिरुज्जलयाए, सुंदरत्तणेण य मोहिऊण मुद्धजणं भरइ वायस्स (?) कण्णे, पच्छा वीसत्थजणावहारं च करेइ, संचिणेइ तप्पच्चयं, पभूयपावपब्भारं, तभारभारिए य [भमइ] भवाडवीकडिल्लम्मि। अवि य-- माया गुणहाणिकरी दोसाण विवड्ढणी फुडं मायः । माया विवेग-हरिणक-विगसणेक्कराहुसमा ।१०९५ । पढि उनाणं धरिऊण दंसणं पाविऊण चारित्तं । तविउं सुचिरंपि तवं जइ माया ता दूसियं सयलं ।१०९६ । अच्छउ ता परलोगे [इहलोग]म्मि वि नरो उ माइल्लो। जइ वि अकयावराहो तहावि सप्पो व भयहेऊ ।१०९७। जह जह करेइ मायं तह तह [अप्पच्चयं]जणे जणइ । अध्यच्चयाओ पुरिसो तणं व तुच्छो लहुं] होइ ।१०९८। जइ धम्मेणं कज्ज सेय पियत्तं च जइ महइ काउं । अट्ठमं पावट्ठाणं तो मायं मयह दूरेण ।१०९९। अहावरे नवमे पावट्ठाणे से णं लोहे इमिणा वि अभिभूए पुरिसे न गणेइ छुहं, न पिवासं, न सायं, नया वि उण्हं, न समं, न या वि विसमं, न कज्जं, न या वि अकजं न गम, न या वि अगम्म, न कालं न या वि अकालं, न सक्कं न या वि असक्कं, अंगीकाऊण किलेसायासं अणवेक्खिऊण मरणभयं महालोहगहगहियए, दव्वओ कि भंडं, खेत्तओ कम्मि काले, भावओ केरिसं वा तं भंडं, कं वा लाहं देइ त्ति चितिऊण कय तद्देसपओगतत्तद्दव्वसंगहे, अगणियसत्थ-संबलओ विसेसे, असोहणे वि तिहि-नक्खत्तमहत्ताइए गच्छइ, मरुमंडले [वियरइ], हिमालए वि य [प]विसइ, मिलेच्छविस [ए वियरइ, नक्कयक्काइ-कर-जलचरचारिभीसणे समुद्दे वि संचरइ तिक्खकंटगफंटगाणेगसावयचोरगिगित्ताइ दूमग्गे वि करेइ रायसेवं पविसइ कयंत[महकुहरदारुणे रणंगणे वि, जवेइ मंताइयं, साहइ मडगाईणि, करेइ वेयालसाहणं, विज्जइ धाउव्वायकिरियाए, निरूवेई निहाण-लक्खणाणि, पविसइ विवरेसु, निहालेइ रसकूवियाओ, पयट्टइ किसिकरणे, गणेइ जोइस, पउंजइ वेज्जयं निरूवेइ] निमित्तं, वावारेइ Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002596
Book TitleManorama Kaha
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorRupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1983
Total Pages402
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy