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सम्मत्त - बीय-लंभो णाम पढमो अवसरो
जओ-
माणुस्सखित्त-जाईकुल-रूवारोग्ग आउयं बुद्धी । सवणोग्गह-सद्धा, संजमोय लोयम्मि दुलहाई ।। ५३।। लण वि सामग्गी, एयं कह-कह वि पुण्णजोएणं । घण्णा कुणति सहलं, जिनसा सण - मग्गमल्लीणा ।।५४।। ता सुरवइ-चाव-चले अत्थे, पेम्मे य रूव तारुण्णे । मा मुज्झह भव्वा, उज्जमेह धम्मे जिद्दट्ठे ।। ५५ ।। अलमेत्थ वित्थरेणं, पत्थ्य - विग्घाय- कारिणा धणियं । पारद्धं चिय भण्णइ, सुणेह सुयणा पयत्तेणं ॥ ५६ ।।
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अत्थि इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहेवासे, सुविभत्त-तिय- चउक्क चच्चरं देवमंदिर - विहाराराममंडियं, देसंतरागयभूरिभमंत वणिय - जणिय- कोलाहलं, मंदरायमाणामर-मंदिर - सिहर-निबद्ध-वाउद्धय-धवल-धयवड-करेहिं धम्मियजणं व हक्कारयंत, हारनीहार- हरहास-धवल-धवलहर सिहर-समारूढ - फलिह-मणि-विमल कुट्टिमतल-संकता कलंक-पडिपुण्ण रमणीयरमणी - मुह-चंद - संदोहतया एग सकलंकचंदसोहा - समुद्धरं, नहयलं असारमिव गणयंतं विलसंतागमहेसरं एगमहेसराहिट्ठियं केलासमवि उवहसंतं, महासइ-हिययं व पर-पुरिसागम्म - धवल- समुत्तुंग - पायार- परिवेढियं, अकलिय-मज्झाए समुच्छलंत-मच्छ-कच्छभ- मगर - सुंसुमार-सय- समाउलाए जंबुद्दीवो व्व लवण समुद्दवेलाए य वर-परिहाए समंतओ कयपरिक्खेवं, पयंड-पवण-पणोल्लिय-महल्लकल्लोल कर - कलिय- रयण - रासिणा दिण्णोवयारमिव जल- निहिणा, रयणायरतडसंठियं रयणपुरं नाम नयरं ।
जम्मि य जिण - मज्जण - जणिय - जयजयारवुम्मीस- वीणा-वेणु- मुइंग - कलकंठ- गायण- गीय-रव-संरुद्ध-सवणंतरो न सुणेइ दुज्जण- वयगाणि सज्जणो । जम्मि य तरुणी-यण - गुरु-नियंब-बिब - निबद्ध - मेहला कलाव- पेरंत रइय-कल- कणिर-कणयfafar -सह- सवण - पबुद्ध-मयरद्धय - विमुक्क-सर- विसर - सल्लिय- सरीर-विहलंघलो, रामायणेक्कसरणो तरुणवग्गो, जत्थ य गिरि - सिहर समुत्तुंग-मत्त मायंग-गल-गज्जियारव सवण समुप्पण्ण घण-थणिय संकेहि, पइ भवण-माहण - हुणिज्जमाणहुयासण - समुच्छि - बहल-धूममालावरुद्ध-नहंगणाभोगदंसण संजायनवपाउसब्भभमेहि, उद्दंड-तड्डविय सेहंड-भारेहि, माणिणी माण-ठिनgaणपच्चलकलकेया रवं मुयंतेहि, नच्चिज्जइ धवलहरो वरिमवसइयासुं बरहिणेहि, जम्मि य इन्भजण - बालियाओ इव महग्घाभरणधारिणीओ, रायंतेउरिआओ इव पसरतबहल - परिमल-घण घुसिण- मिगनाहि कप्पूरागरु - सालिणीओ रोहणागिरि धरिणी इव पंचवण्ण-रयण- रेहिराओ, सप्पुरिस-चित्तवित्तीओ इव परगुज्झ रक्खणसमत्थवत्थोवसोहियाओ, कुलडा नारीओ इव पर-पुरिसदंसणहेउं पसारिय- नेत्त- जुयलाओ, सह-वियक्खण-पंडिय-मंडलीओ इव वियारिज्जत - सुत्त - दोसगुणाओ, खलयण-वयण- पवित्तीओ इव पर-मम्म - विघट्टण-पवण-नाराय-सय- सेवियाओ, दुग्गय-पामरबहुओ इव पयडीदीसंतकायाहरणाओ, सुमित्त-चित्तवित्तीओ इव निरंतर सिनेह - कलियाओ हट्ट-पंतीओ विरायंति । किं चace गुणवं विथड्ढो धम्मियजण वच्छलो कला-कुसलो। कय-करणो दाणरुई दयावरो दुत्थियजणेसु ।। ५७ ।। सरलो पियवओ सज्जणो य परकज्जकरणतल्लिच्छो। परदव्वहरण-विरओ जच्चंधो पर कलत्तेसु ।। ५८ ।। fos - ठावण- पडुपण्णी भंगम्मि यतीए भीरुओ धणियं । सत्थो कमलदलच्छो वसइ सया पुरिसवग्गो त्ति ।। ५९ ।।
- रूवधारिणीओ, विसाल-सीलेण सालियंगीओ । गयगामिणीओ सिंगारसार - रस - कूवियाओ व्व ॥ ६० ॥ pra- a- वडिआओ, विहि-सिप्पि - निम्मिया निउणं । कामियण हरिण निवडणहेडं वरवागुराओ व्व ॥ ६१ ॥ सालीण-सरल- पिथ-भासणीओ, ललिय व्व लुलियचरियाओ । देव-गुरु-भत्तिमंताओ, जत्थ महिलाओ निवसति ॥
तत्थ णं नयरे महंत सामंत पणाम-समय-निवडंत-मउलिमाला-मयरद्ध-संदोह - हविय - कुसुम-पूइय- पायवीढो, दप्पुद्धुरारिकुंभिकुंभ- निब्भेयणकेसरी, समर-संघट्ट- समावज्जिय-सूरपुरिस - निद्दय-खग्गप्पहार पहय- दंति-दंत-समुच्छलिय-जलणपुलिंग-भासुरे, निरंतर-निवडिअ - उत्तिमंग कर - कलियकराल - करवाल - नच्चंत कबंध-भीसणे, तुरयखरखुर-समुक्खय-खोणी रेणु
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