SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 9
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मङ्गलम् जैन धर्म के सबसे प्राचीन गच्छ खरतरगच्छ के अवढरदानी आचार्यों का जैन संघ पर ही नहीं, अपितु संपूर्ण मानव जाति के विकास में बहुत योगदान रहा है। ओसवाल समाज की संरचना व विस्तार उन आचार्यों के साधना पक्ष की निर्मलता का ही इतिहास है। दूर-सुदूर प्रदेशों में विचरण कर बिखरे हुए भारतीय समाज को अप्रत्यक्ष रूप से एकत्र करने में उनकी भूमिका को रेखांकित किये बिना कोई भी इतिहास आधा अधूरा ही माना जायेगा। इतिहास मानवीय मन को सदा ही आकृष्ट करता रहा है। पन्नों पर अंकित अपने पूर्वजों के व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व को ज्यों-ज्यों वह पढता है, त्यों-त्यों उसे ऐसा लगता है, जैसे वह उनसे साक्षात्कार कर रहा है । इतिहास को इसीलिये तो गवाक्ष कहा जाता है क्योंकि इसी गवाक्ष से हम अपने स्वर्णिम अतीत में झांक सकते हैं। इतिहास मात्र अपने पूर्वजों की कहानी कहकर ही इतिश्री नहीं करता बल्कि वर्तमान पीढी के लिये वह प्रेरणा का पाथेय भी बनता है। इतिहास की सार्थकता को कोई भी नकार नहीं सकता। प्राणी जगत विस्मरणशील है। वह घटनाओं का साक्षी होकर भी लम्बे समय तक उसकी स्मृति अपने मस्तिष्क में संजोकर नहीं रख सकता। घटनाओं को स्मृति में बनाये रखने का कार्य उन्हें लिपिबद्ध करने से ही होता है। वह लिपिबद्ध घटनाक्रम ही भविष्य में इतिहास के नाम से जाना जाता है। ___ जैन धर्म के आचार्य, साधुगण प्रसिद्धि की कामना से सदैव दूर ही रहे हैं। वे अपनी आचार निष्ठा के ही पुरुषार्थी रहे । इस कारण अन्य बाह्य क्रियाओं से निर्लिप्त ही रहे। उनकी यह अलिप्तता उनके व्यक्तित्व की गरिमा और साधना की पूर्णता के पूर्ण अनुकूल थी। इस कारण इतिहास की सूक्ष्मता और विशालता के आलेखन के लिये वे रुचिवान् नहीं रहे । इसलिये इतिहास का विस्तार हमें पूर्ण मात्रा में उपलब्ध नहीं होता। फिर भी हमें जितना उपलब्ध है वह भी पर्याप्त है। हम इस उपलब्धि से भी अपने उन दिव्य तपोमूर्तियों की झांकी पा सकते हैं और वह झांकी भी कम मूल्यवान् नहीं है। खरतरगच्छ परम्परा जैन समाज की सर्वाधिक प्राचीन परम्परा है। इस परम्परा में साधना, साहित्य, तीर्थ-स्थापना, ज्ञान भंडारों की स्थापना, संघ विस्तार आदि आयामों में ऐसे मूल्यवान् व्यक्तित्वों का सर्जन किया है जो आज भी प्रकाशस्तंभ बन कर हमारा मार्गदर्शन करते हैं। परमात्मा महावीर के निर्वाण के बाद उनकी मूलवाणी को स्पष्ट करने के लक्ष्य से उन पर टीकाएँ लिखने वाले नवांगी वृत्तिकार श्री अभयदेवसूरि इसी परम्परा की देन है। भगवान् महावीर के निर्वाण के बाद जैन संघ के विस्तार का रिकार्ड आज भी दादा गुरुदेव श्री जिनदत्तसूरि के नाम है, वे भी इसी परम्परा के _Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy