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________________ (३. आचार्य श्री जिनऋद्धिसूरि चुरू के यति चिमनीराम जी के शिष्य रामकुमार जी ब्राह्मण परिवार में जन्मे थे। त्यागवैराग्य के कारण गद्दी के जंजाल में पड़ना अस्वीकार्य था। बीकानेर आकर जिनालयों व नाल दादाजी के दर्शन कर पद यात्रा करते हुए आबू पहुँचे। रेल भाड़े का पैसा कहां था? एक यतिजी के साथ गिरनार जी और सिद्धाचल जी की यात्रा कर, सं० १९४९ आषाढ़ सुदि ६ को गुरुदेव श्री मोहनलाल जी महाराज से दीक्षित हो रामकुमार से ऋद्धिमुनि बने । आपको श्री यशोमुनि जी का शिष्य घोषित किया गया। गुरुदेव की सेवा में रहकर सतत विद्याध्ययन किया। सं० १९५२ में गुरु श्री यशोमुनि जी के साथ रोहिड़ा में प्रतिष्ठा कराई। सं० १९६१ में बुहारी में प्रतिष्ठोत्सव के समय मना करने पर भी अश्लील रिकार्ड बजाने पर, आपके मौन रहने पर, ग्रामोफोन भी मौन हो गया। सं० १९६३ के कठोर चातुर्मास में गुजराती-मारवाड़ियों का पारस्परिक क्लेश दूर कर सम्पर्क कराया। मोहनलाल जी महाराज के चरणों की व नये मन्दिर जी की प्रतिष्ठा कराई। झगड़िया जी की संघ यात्रा व बड़ोद में शांतिनाथ भगवान् की प्रतिमा और व्यारे, सरमोण, सूरत-नवापुरा आदि स्थानों में प्रतिष्ठा कराई। मांडवगढ़ में गुर्वाज्ञा से योगोद्वहन किया। सं० १९६६ मार्गशीर्ष शुक्ला ३ को ग्वालियर में गुरु महाराज ने आपको पंन्यास पद से विभूषित किया। जयपुर चातुर्मास कर प्रथम बार जन्मभूमि चुरू पधारे और तेरापंथियों को शास्त्र-चर्चा में निरुत्तर किया। नागौर संघ में अनैक्य दूर कर संप कराया, दीक्षा महोत्सवादि हुए। सं० १९६७ का चातुर्मास कुचेरा में किया। वहाँ ठाकुर जी की सवारी और यज्ञादि से अनावृष्टि दूर न हुई तो आपके उपदेश से जैन रथ यात्रा होने पर मूसलधार वर्षा से तालाब भर गए। इसी प्रकार लूणसर में भी वर्षा हुई तो कुचेरा के ३० घर स्थानकवासियों ने पुनः मन्दिर आम्नाय स्वीकार कर उत्सवादि किए। १५० व्यक्तियों ने प्रथम बार श→जय की यात्रा की। आपश्री के जयपुर पधारने पर उद्यापनादि हुए। बम्बई में दो चातुर्मास कर आप पालीताणा पधारे। ८१ आयंबिल और ५० नवकरवाली पूर्वक निन्नाणु यात्रा की। सं० १९७१ में खंभात में मोहनलाल जी जैन हुन्नरशाला व पाठशाला स्थापित कराई। सं० १९७२ सूरत, १९७३-७४ बम्बई में उपधान तप आदि अनेक उत्सव कराये। पालीताणा पधार कर एकान्तर उपवास और पारणे में आयंबिल पूर्वक उग्र तपश्चर्या की। स्थानकवासी मुनि रूपचंद जी के शिष्य गुलाबचंद व गिरधारीलाल ने आकर सं० १९७५ वैशाख सुदि ६ को आपश्री के पास दीक्षा ली। गुलाबमुनि व गिरिवरमुनि नाम स्थापन किया। सं० १९७६ बम्बई चातुर्मास कर खंभात पधारे। अठाई महोत्सवादि के पश्चात् सूरत पधार कर दादागुरु श्री मोहनलाल जी महाराज के ज्ञान भण्डार को सुव्यवस्थित करने का बीड़ा उठाया। ४५ अल्मारियों की अलग-अलग दाताओं से व्यवस्था की। आलीशान मकान था। उपधान-माला आदि से तीस हजार ज्ञान भंडार में जमा हुए। मोहनलाल जी जैन पाठशाला की भी स्थापना हुई। सं० १९७९ में खंभात और १९८० कड़ोद चातुर्मास किया। लाडुआ श्रीमाली भाईयों को संघ के भोज में शामिल न करने के भेदभाव को दूर संविग्न साधु-साध्वी परम्परा का इतिहास (३८५) _Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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