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________________ चातुर्मास के पश्चात् पंन्यास जी बम्बई की ओर पधारे, दहाणु में गुरु महाराज के चरणों में उपस्थित हुए और गुरु सेवा में लग गए। एक दिन गुरु महाराज ने पं० यशोमुनि जी को शत्रुंजय यात्रार्थ जाने का आदेश दिया। आप ८ शिष्यों के साथ वल्लभी तक पहुँचे तो उन्हें गुरु महाराज के स्वर्गवास के समाचार मिले। सं० १९६४ का चातुर्मास पालीताणा करके सेठानी आनन्दकुंवर बाई की प्रार्थना से रतलाम पधारे। सेठानी जी ने उद्यापनादि में प्रचुर द्रव्य व्यय किया। सूरत के नवलचंदभाई को दीक्षा देकर नीतिमुनि नाम से ऋद्धिमुनि जी का शिष्य घोषित किया। इसी समय सूरत के पास कठोर गाँव में प्रतिष्ठा के अवसर पर समुदाय के कान्तिमुनि, देवमुनि, ऋद्धिमुनि, नयमुनि, कल्याणमुनि, क्षमामुनि आदि ३० साधुओं ने श्री यशोमुनि जी को आचार्य पद पर प्रतिष्ठित करने का लिखित निर्णय किया। श्री यशोमुनि जी सेमलिया, उज्जैन, मक्सीजी होते हुए इन्दौर पधारे और केशरमुनि, रतनमुनि, भावमुनि को योगोद्वहन कराया। ऋद्धिमुनि सूरत से विहार कर मांडवगढ़ में आ मिले। जयपुर से गुमानमुनि भी गुणा की छावनी आ पहुँचे। आपने दोनों को योगोद्वहन क्रिया में प्रवेश कराया। सं० १९६५ का चातुर्मास ग्वालियर में किया। गुमानमुनि, ऋद्धिमुनि और केशरमुनि को पंन्यास पद से विभूषित किया। ग्वालियर, दतिया, झाँसी, कानपुर, लखनऊ, अयोध्या, काशी, पटना होते हुए पावापुरी पधारे। निर्वाण भूमि की यात्रा कर कुंडलपुर, राजगृह, क्षत्रियकुण्ड आदि होते हुए सम्मेतशिखर पधारे । कलकत्त संघ की विनती से कलकत्ता पधारे । सं० १९६६ का चातुर्मास किया। सं० १९६७ अजीमगंज में और सं० १९६८ में बालूचर चातुर्मास किया। आपके सत्संग से अमरचंद जी बोथरा ने धर्म का रहस्य समझकर सपरिवार तेरापंथ की श्रद्धा त्याग कर जिन प्रतिमा की दृढ़ मान्यता स्वीकार की। संघ की विनती से गुमानमुनि जी, केशरमुनि जी और बुद्धिमुनि जी को कलकत्ता चातुर्मास के लिए आपश्री ने भेजा । आपश्री शान्त-दान्त, विद्वान् और तपस्वी थे। सारा संघ आपको आचार्य पद प्रदान करने के पक्ष में था। सूरत में हुए मुनि - सम्मेलन का निर्णय, कृपाचन्द्र जी महाराज व अनेक स्थानों के संघ के पत्र आ जाने से जगत् सेठ फतेहचंद, रा०ब० केशरीमल जी, रा०ब० बद्रीदास जी, नथमल जी गोलेच्छा आदि के आग्रह से आपको सं० १९६९ ज्येष्ठ सुदि ६ के दिन आचार्य पद से विभूषित किया गया । आपश्री का लक्ष्य आत्मशुद्धि की ओर था । मौन, अभिग्रह पूर्वक तपश्चर्या करने लगे। पं० केशरमुनि जी, भावमुनि जी आदि साधुओं के साथ भागलपुर, चम्पापुरी, शिखर जी की यात्रा कर पावापुरी पधारे। आश्विन सुदि में आपने ध्यान और जाप पूर्वक दीर्घ तपस्या प्रारम्भ की । इच्छा न होते हुए भी संघ के आग्रह से मिगसर वदि १२ को ५३ उपवास का पारणा किया। दोपहर में उल्टी होने के बाद अशाता बढ़ती गई और मिगसिर सुदि ३ सं० १९७० में समाधिपूर्वक रात्रि में २ बजे नश्वर देह को त्याग कर स्वर्गवासी हुए । पावापुरी में जल मन्दिर - तालाब के सामने देहरी में आपकी प्रतिमा विराजमान की गई । (३८४) Jain Education International 2010_04 खरतरगच्छ का इतिहास, प्रथम खण्ड For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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