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________________ २. श्री जिनकृपाचन्द्रसूरि का समुदाय १. आचार्य श्री जिनकृपाचन्द्रसूरि श्री कीर्तिरत्नसूरि जी की परम्परा में श्री जिनकृपाचन्द्रसूरि जी बीसवीं शताब्दी में एक तेजस्वी विद्वान् और महान् प्रभावशाली आचार्य हो गए हैं। आपका जन्म जोधपुर राज्य के चोमुं गाँव में बाफणा मेघराज जी की धर्मपत्नी अमरादेवी की कोख से सं० १९१३ में हुआ । कृपाचन्द्र जन्म नाम था। यतिवर्य युक्तिअमृत मुनि के पास आपने सिद्धान्तों का समुचित अध्ययन कर सं० १९२५ चैत्र दि ३ में यति दीक्षा स्वीकार की। दीक्षा नाम कीर्त्तिसार रखा गया । तीर्थयात्रा और धर्म प्रचार करते हुए आपने मध्यप्रदेश के रायपुर, नागपुर आदि नगरों में पर्याप्त विचरण किया । त्याग, वैराग्य और संयममार्ग में अग्रसर होने की भावना तो थी ही, गुरुजी के दिवंगत होने पर आपने बीकानेर के दो उपाश्रय, ज्ञान भण्डार, मन्दिर और नाल की धर्मशाला आदि लाखों की सम्पत्ति छोड़ कर सं० १९४५ में क्रियोद्धार कर लिया । इन्दौर में पैतालीस आगम का वाचन किया। आपने ३२ वर्ष पर्यन्त अनवरत विद्याध्ययन किया । यति अवस्था में ज्योतिष विद्या में पारगामित्व प्राप्त किया, पर साधु होने के पश्चात् उस ओर लक्ष भी नहीं दिया । सं० १९५२ में उदयपुर चातुर्मास कर केसरिया जी पधारे। खैरवाड़ा में जिनालय प्रतिष्ठित किया। देसूरी, जोधपुर, जैसलमेर और फलौदी चातुर्मास कर सं० १९५७ में बीकानेर आकर यति-जीवन की परित्यक्त सम्पत्ति को विधिवत् ट्रस्टी आदि नियुक्त कर संघ के अधीन की। सं० १९५८ का चातुर्मास जयतारण कर गोड़वाड़ पंचतीर्थी की यात्रा की। फलौदी के सेठ फूलचंद जी गोलेच्छा के संघ सहित शत्रुंजय की यात्रा की । सं० १९५९ पालिताणा और सं० १९६० में पोरबन्दर चातुर्मास कर कच्छ देश में पदार्पण किया। मुद्रा, मांडवी, बिदड़ा, भाडिया, अंजार आदि में पाँच वर्ष विचरे, पाँच उपधान कराये, दस साधु-साध्वियों को दीक्षित किया। मांडवी के सेठ नाथा भाई ने आपके उपदेश से शत्रुंजय का संघ निकाला । सं० १९६६ में आपने १७ ठाणों से पालीताण में चातुर्मास किया । नन्दीश्वर द्वीप की रचना हुई और पाँच साधु-साध्वियों को दीक्षित किया । सं० १९६० का चातुर्मास जामनगर कर उपधान कराया। वहाँ चार दीक्षाएँ हुईं। सं० १९६८ का चातुर्मास मोरबी में कर भोयणी, शंखेश्वर होकर अहमदाबाद पधारे। सं० १९६७ का चौमासा अहमदाबाद में किया । वहाँ आपने भगवतीसूत्र बाँचा | सोने की मोहरों की प्रभावना हुई, स्वधर्मीवात्सल्यादि किये गये । वहाँ से भावनगर, तलाजा होते हुए खंभात पधारे। वहाँ से सेठ पानाचंद भभाई की विनती से सूरत पधार कर सं० १९७१ का चातुर्मास कर साधुओं को दीक्षित किया। जगड़िया, भरोंच, कावी होते हुए पादरा पधारे। फिर बड़ौदा होते हुए बम्बई पधारने पर मोतीशाह सेठ के वंशज रतनचंद खीमचंद, मूलचंद हीराचंद, प्रेमचंद कल्याणचंद, केशरीचंद कल्याणचंद ने प्रवेशोत्सव कर सं० १९७२ का चातुर्मास लालबाग में बड़े ठाठ से कराया । भगवतीसूत्र बाँचा | संघ (३७६) Jain Education International 2010_04 खरतरगच्छ का इतिहास, प्रथम खण्ड For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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