________________
नेमीदेवी थे। ये छाजेड़ गोत्रीय थे। इनके पिता भी दीक्षित होकर मुनि प्रतापसागर के नाम से प्रसिद्ध हुए, जिनका स्वर्गवास जयपुर में हुआ। इनकी दीक्षा विक्रम संवत् मार्गशीर्ष वदि दूज २०३० में पालिताणा में हुई और ये आचार्य श्री जिनकांतिसागरसूरि के शिष्य बने। इनका दीक्षा नाम मनोज्ञसागर रखा गया। श्री मनोज्ञसागर जी के सत्प्रयत्नों से ब्रह्मसर तीर्थ का उद्धार हो रहा है जो कि दादा जिनकुशलसूरि का ही दर्शनीय स्थान माना जाता है।
(मुनि श्री सुयशसागर
संवत् २०१९ आसोज सुदि १० को भुज (कच्छ) में इनका जन्म हुआ। इनके पिता-माता का नाम था-श्री शंकरलाल जी और श्रीमती सावित्री देवी। इनका जन्म नाम सूर्यकान्त था। इन्होंने संवत् २०३५ मिगसर वदि ५ को सिहोर में श्री जिनकान्तिसागरसूरि जी के शिष्य बनकर सुयशसागर नाम प्राप्त किया।
(मुनि श्री पीयूषसागर
संवत् २०१९ मार्गशीर्ष सुदि १२ को नयापारा (मध्यप्रदेश) में पारख गोत्रीय श्री नेमीचन्द जी - श्रीमती जमनादेवी के यहाँ इनका जन्म हुआ। जन्म नाम प्रदीपकुमार था। विक्रम संवत् २०४१ फाल्गुन सुदि दूज को मालवीय नगर - दुर्ग में आचार्य श्री जिनउदयसागर जी महाराज के पास दीक्षा ग्रहण की। नाम रखा गया-पीयूषसागर। आपके शिष्य-प्रशिष्य श्री सम्यक्रत्नसागर - श्री महेन्द्रसागर - श्री मनीषसागर हैं। आपका संवत् २०५९ का चातुर्मास गाँधीधाम में है।
(मुनि श्री मणिरत्नसागर
पटोंदा (स्टेशन श्रीमहावीरजी राज०) के निवासी पल्लीवाल जातीय राजोरिया गोत्रीय श्री धन्नालाल जी जैन-श्रीमती चमेली बाई के पुत्र के रूप में १९६० ई० के लगभग आपका जन्म हुआ। आपका जन्म नाम महेशचन्द्र था। अकस्मात् ही वैराग्य भावना बढ़ जाने से २६ जनवरी २००० को मालेगांव में श्री जिनमहोदयसागरसूरि के पास आपने दीक्षा ग्रहण कर मुनि मणिरत्नसागर नाम प्राप्त किया। आपके शिष्य मुनि मलयरत्नसागर हैं। प्रतिष्ठा सम्बन्धी विधि-विधानों के आप विशिष्ट जानकार हैं। महेशचन्द्र के रूप में आपने सैकड़ों स्थानों पर प्रतिष्ठादि के विधि-विधान कराये हैं।
संविग्न साधु-साध्वी परम्परा का इतिहास
(३७३)
Jain Education International 2010_04
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org