SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 434
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ में श्री जैन श्वे० सेवा संघ विद्यालय, बालूचर ( मुर्शिदाबाद) में श्री हरिसागर जैन ज्ञान मन्दिर - जैन पाठशाला आदि विशिष्ट संस्थाओं की स्थापना हुई । आचार्यपद :- सं० १९९२ में आप शिष्य परिवार सहित अजीमगंज पधारे। श्री संघ ने शासन सेवा और योग्यता का मूल्याकंन कर आपश्री को मार्गशीर्ष सुदि १४ को आचार्य पद से विभूषित किया । साहित्य सेवा :- आपको ज्ञान - निरीक्षण, शिलालेख संग्रह, प्रशस्ति संग्रह, प्राचीन कृतियों की प्रतिलिपि करने का उत्साह था। बीकानेर, लोहावट आदि के ज्ञान भंडार को सुव्यवस्थित करने में आप संलग्न रहे । दो वर्ष पर्यन्त जैसलमेर में स्थिति कर रात-दिन स्वयं तो कार्य करते ही, पाँच पण्डित और पाँच लहियों को रखकर अलभ्य ग्रन्थों की प्रतिलिपियाँ करवाई । स्तवनावली दो भाग, चार दादा साहब की पूजा, महातपस्वी श्री छगनसागर जी महाराज का जीवन वृत्त आदि ग्रंथ लिखे तथा सुखसागर ज्ञान बिन्दु / पुष्प / क्रमांक के रूप में से ५० ग्रन्थों का प्रकाशन किया। स्वर्गवास : - अनवरत साहित्यिक परिश्रम करने से आप अस्वस्थ हो गए। जैसलमेर से पधारने के पश्चात् अपना अन्तिम समय तीर्थ भूमि में व्यतीत करने के हेतु फलौदी पार्श्वनाथ तीर्थ पधारे। स्वास्थ्य दिनों दिन गिरता ही गया । अन्ततः सं० २००६ पौष वदि ८ मंगलवार को प्रातः काल समाधि पूर्वक स्वर्गवासी हुए । आचार्य श्री जिनमणिसागरसूरि महोपाध्याय सुमतिसागर जी के आप शिष्य रत्न थे । आपका जन्म सं० १९४३ में रूपावटी गाँव - बांकडिया बड़गांव के पोरवाड़ गुलाबचंद जी की पत्नी पानीबाई की कोख से हुआ । आपका नाम मनजी था। एक बार गाँव वालों के साथ सिद्धाचल की यात्रार्थ जाने पर आपको अपूर्व शान्ति मिली और प्रभु के मार्ग पर चलने को ललायित हो गए । दृढ़ निश्चयी मनजी को मनाने आए हुए माता-पिता को दीक्षा ग्रहण करने की आज्ञा देनी पड़ी। सं० १९६० वैशाख सुदि २ को सिद्धाचलजी में मुनि सुमतिसागर जी के पास दीक्षा ली। मुनि मणिसागर नाम रखा गया। आपने शास्त्राध्ययन बड़ी लगन से किया और सं० १९६४ में संघ के आग्रह और उपकार बुद्धि से रायपुर और राजनांदगाँव में गुरु-शिष्य ने अलग-अलग चातुर्मास किया। योगीराज चिदानंद जी (द्वितीय) कृत आत्म-भ्रमोच्छेदनभानु नामक ८० पृष्ठ की पुस्तिका को विस्तृत कर ३५० पृष्ठ में उन्हीं के नाम से प्रकाशित करवाया। यह आपकी उदारता और निःस्वार्थता का उदाहरण है। सम्मेतशिखर महातीर्थ के लिए श्वेताम्बर और दिगम्बर समाज का राजकीय अदालत में विवाद चल रहा था। उधर सरकार अपनी सेना के लिए वहाँ बूचड़खाना खोलना चाहती थी। श्वे० समाज की ओर से पैरवी करने वाले कलकत्ता के राय बद्रीदासजी थे। उन्होंने आध्यात्मिक शक्ति की सहायता हेतु साधु समाज से निवेदन किया । पाद विहार से शीघ्र पहुंचना संभव नहीं था । सुमतिसागर जी के (३६२) Jain Education International 2010_04 खरतरगच्छ का इतिहास, प्रथम खण्ड For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy