________________
४. यौगिक शक्ति-प्रयोग
खरतरगच्छ के श्रमणसंघ में अनेकानेक योग-प्रतिभाएँ प्रकट हुईं। खरतरगच्छाचार्यों का साधनामय जीवन बड़ा ओजस्वी रहा। अनगिनत कष्टों, बाधाओं और विघ्नों के बीच भी वे अविचल रहे। खरतरगच्छीय इतिहास उन महापुरुषों के सद्विचार, सदाचार, त्याग, योग, वैराग्य के अनेकानेक घटना-क्रमों से भरा है। उन्होंने अपनी यौगिक शक्तियों का उपयोग करके शासन-रक्षा एवं शासन-प्रभावना में आशातीत अभिवृद्धि की। उन अमृत-पुरुषों के वरद हस्त की छत्र-छाया के पुण्य-प्रभाव से ही यह गच्छ अनगिनत बाधाओं को चीरता हुआ जैन समाज में अपना गौरवपूर्ण स्थान बनाये हुए है।
खरतरगच्छ में हुए चार दादा-गुरुदेवों की यौगिक शक्तियाँ एवं उनके चमत्कार तो प्रसिद्ध ही हैं। सैकड़ों चमत्कार उनसे जुड़े हुए हैं। उन्हें प्रत्यक्ष प्रभावी मानकर प्रत्येक जैन उनके प्रति श्रद्धान्वित है। खरतरगछ के सर्वाधिक प्रभावशाली आचार्य जिनदत्तसूरि तो मन्त्र-विद्या में अत्यन्त निष्णात थे। खरतरगच्छ के ही एक महान् योगीराज आनन्दघन के यौगिक चमत्कार भी प्रसिद्ध हैं। अध्यात्म योगी श्रीमद् देवचंद्र, ज्ञानसार, चिदानंद, ज्ञानानंद और सहजानन्दघन (भद्रमुनि) भी अच्छे योगी थे। नामोल्लेख कितने लोगों का किया जा सकता है। खरतरगच्छ तो योग-साधना का रत्नाकर है। अन्धों को आँखें देना, गूगों को वाणी देना, अमावस्या को पूर्णिमा में बदल देना, ऐसे कितने ही चमत्कार हैं जो खरतरगच्छाचार्यों की यौगिक प्रतिभा के ज्वलन्त उदाहरण हैं। ५. नरेशों को प्रतिबोध
खरतरगच्छ की यह प्रमुख विशेषता है कि वह आम जनसमुदाय के साथ-साथ राज्याधिपति नरेशों से भी सम्बद्ध रहा। प्रत्येक खरतरगच्छाचार्य ने अपने समसामयिक नरेशों को प्रतिबोध दिया और उन पर अपना प्रभुत्व जमाकर धर्म के हित में काम करवाये।
आचार्य श्री जिनेश्वरसूरि और श्री बुद्धिसागरसूरि के चरित्र एवं ज्ञान से पाटण-नरेश दुर्लभराज अत्यन्त प्रभावित था। इन युगलबन्धुओं का राजा पर प्रभाव होने के कारण ही सुविहितमार्गी मुनियों का पाटण एवं सारे गुजरात में आवागमन शुरु हुआ।
आचार्य श्री जिनवल्लभसूरि का धारानरेश नरवर्म पर विशेष प्रभाव था। नरवर्म ने आचार्य के निर्देश से चित्तौड़ के दो जैन मन्दिरों में दो लाख रुपये खर्च करके पूजन-मण्डपिकाएँ बनाई थी।
आचार्य जिनदत्तसूरि का भी अनेक राजाओं पर प्रभाव था, जिनमें त्रिभुवनगिरि के राजा कुमारपाल और अजमेर के राजा अर्णोराज का नाम उल्लेखनीय है। दिल्ली के महाराज मदनपाल मणिधारी जिनचन्द्रसूरि के अनन्य भक्त थे।
भूमिका
(५)
Jain Education International 2010_04
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org