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________________ इस प्रकार श्री जिनपालोपाध्याय का विशेष आग्रह देखकर महाराजश्री ने प्रसन्न मन से मन्त्र स्मरण के साथ मस्तक पर हाथ रख कर धर्मरुचि गणि, वीरभद्र गणि, सुमति गणि और ठाकुर विजयसिंह आदि श्रावकों के साथ उपाध्याय जी को मनोदानन्द पण्डित को जीतने के लिए भेज दिया। नगरकोट्टीय राजाधिराज श्री पृथ्वीचन्द्र की सुख पृच्छा निमित्त आये हुए अनेक राजा-राणाओं से भूषित उनके सभा भवन में पण्डितप्रवर श्री जिनपालोपाध्याय जी अपने परिवार के साथ पहुंचे। ६३. उपाध्याय जी ने सुन्दर श्लोकों द्वारा राजा पृथ्वीचन्द्र की समयानुकूल प्रशंसा करके वहाँ पर बैठे हुए पं० मनोदानन्द को सम्बोधन करके कहा-पण्डितरत्न ! आपने हमारी पौषधशाला के द्वार पर विज्ञापन पत्र किसलिए चिपकाया था। उसने कहा-आप लोगों को जीतने के लिए। उपाध्याय जी ने कहा-बहुत अच्छा, किसी एक विषय को लेकर पूर्व पक्ष अङ्गीकार कीजिए। पण्डित-आप लोग षड्दर्शनों से बहिर्भूत हैं। इस बात को मैं सिद्ध करूँगा, यही मेरा पक्ष है। उपाध्याय-इसे न्यायानुसार प्रमाण सिद्ध करने के लिए अनुमान स्वरूप बाँधिये। पण्डित-"विवादाध्यासिता दर्शनबाह्याः प्रयुक्ताचारविकलत्वात् म्लेच्छवत्" अर्थात् वाद-प्रतिवाद करने वाले जैन-साधु छहों दर्शनों से बहिष्कृत है, प्रयुक्त आचार से विकल (रहित) होने के कारण म्लेच्छों की तरह। श्री उपाध्याय जी हँस कर बोले-पण्डितराज मनोदानन्द! आपके कहे हुए इस अनुमान में कितने दूषण दिखलाऊँ? पण्डित-हाँ, आप अपनी शक्ति के अनुसार दिखलावें। परन्तु इसका भी ध्यान रहे कि उन सबका आपको समर्थन करना पड़ेगा। उपाध्याय-पंडितराज ! सावधान होकर सुनिये! आपने कहा कि-"विवादाध्यासिता दर्शनबाह्याः प्रयुक्ताचारविकलत्वात् म्लेच्छवत्" आपके कहे इस अनुमान में "प्रयुक्ताचारविकलत्वान्" यह हेतु निश्चित नहीं किन्तु अनेकान्तिक है। आपका उद्देश्य हम लोगों में षड्दर्शन बाह्यता सिद्ध करने का है अर्थात् षड्दर्शन बाह्य साध्य है। परन्तु षड्दर्शनों के भीतर माने हुये आपके विपक्षभूत बौद्ध, चार्वाकी आदि में भी यह आपका दिया हुआ हेतु चला जाता है-लागू होता है, क्योंकि वे भी आपके अभिमत वेद प्रयुक्त आचार से पराङ्मुख है। इसलिए अतिव्याप्ति नामक दोष अनिवार्य है। और आपका दिया हुआ "म्लेच्छवत्" यह दृष्टान्त भी साधन विकल है। आप म्लेच्छों में प्रयुक्त आचार की विकलता एक देश से मानते हैं या सर्वतोभावेन? यदि कहें कि एक देश से, तो वह ठीक नहीं, क्योंकि म्लेच्छ भी अपनी जाति के अनुसार कुछ न कुछ लोकाचार का पालन करते हुये दिखलाई देते हैं और लोकाचार सभी वेदोक्त ही हैं, इसलिए आपका कहा हुआ हेतु असिद्ध है यानि दृष्टान्त में नहीं घटता। यदि आप कहें कि म्लेच्छों में सम्पूर्ण वेदोक्त आचार नहीं पाया जाता, इसलिए वे दर्शन बाह्य (११४) खरतरगच्छ का इतिहास, प्रथम-खण्ड Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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