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________________ वस्तुतः इन सभी विशेषताओं के कारण ही खरतरगच्छ का नाम गौरवान्वित हुआ और इसकी परम्परा में हुए श्रमण एवं श्रमणाचार्य जन-जन की श्रद्धा के केन्द्र बने। ___ खरतरगच्छ स्वयं में अनेक विशेषताओं को समेटे है। यहाँ हम इस गच्छ की कुछ विशिष्ट उपलब्धियों पर चर्चा कर रहे हैं। १. शिथिलाचार का उन्मूलन : एक क्रान्तिकारी चरण जैसे नदी की धारा में घटोतरी और बढ़ोतरी होती है, वैसे ही जैन धर्म में भी क्षीणता और व्यापकता आई। धर्म-परम्परा एवं विधि-विधानों के अमृत में लोगों ने यों जहर घोला कि अमृत का अस्तित्व खतरे में पड़ गया। खरतरगच्छ ने धर्म, संघ एवं परम्परा को इस जहरीले वातावरण से न केवल मुक्त किया, वरन् अमृत-जीवन की पगडंडी पर आरूढ़ किया। खरतरगच्छीय परम्परा में हुए आचार्यों/मुनियों की देन जैन-इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित रहेगी। खरतरगच्छ की परम्परा प्रकट नहीं होती तो आज शायद जैन मन्दिर/जिनालय भोगलिप्सा के साधन और जैन साधु मठाधीश या पण्डों के रूप में दृष्टिगत होते। डॉ. दशरथ शर्मा के अनुसार खरतरगच्छ के आचार्यों का मैं तो सबसे बड़ा कार्य यह समझता हूँ कि राज-विरोध, जन-विरोध, श्रेष्ठि-विरोध की कुछ परवाह न कर उन्होंने अनाचार एवं अनैक्य की जड़ पर कुठाराघात किया। उन्होंने जैन धर्म का मार्ग सर्व ज्ञातियों के लिए खोला, सब को समानाधिकार देकर एक सूत्र में बाँधने का प्रयत्न किया। शिथिलाचार का उन्मूलन करने के लिए आचार्य जिनेश्वरसूरि, बुद्धिसागरसूरि, जिनवल्लभसूरि, जिनदत्तसूरि आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। खरतरगच्छ ज्ञानमूलक आचार को मुख्यता देता रहा है। अतः गच्छ में यदि कभी शिथिलाचार के दीमक लगे, तो गच्छ-स्थविर जागरूकतापूर्वक शिथिलाचार को समाप्त करते। यही कारण है कि अपनी आचार-परम्परा को निर्मल एवं पवित्र बनाये रखने के लिए खरतरगच्छाचार्यों ने समय-समय पर 'क्रियोद्धार' किया। अकबर प्रतिबोधक आचार्य जिनचन्द्रसूरि द्वारा किया गया 'क्रियोद्धार' खरतरगच्छ की आचार-परम्परा को जीवन एवं विशुद्ध बनाने का महत्त्वपूर्ण कदम था। २. शास्त्रीय विधानों की पुनर्स्थापना चैत्यवासी लोगों ने अपनी सुविधा एवं मनोभावना के अनुरूप अपना आचार-व्यवहार बना रखा था। धर्म-संघ से सम्बद्ध प्रत्येक व्यक्ति को अपना आचार शास्त्र-सम्मत सिद्ध करना भी अनिवार्य है। अनुयायी लोग सामान्यतया भोले-भाले एवं शास्त्रों की गूढ बातों से अनभिज्ञ होते हैं। चैत्यवासी यतिवर्ग ने इस कमजोरी का लाभ उठाया। उन्होंने शास्त्रीय बातों की अपने ढंग से व्याख्याएँ की और भोलीभाली जनता को गुमराह करने की कोशिश की। भूमिका For Private & Personal Use Only Jain Education International 2010_04 www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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