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________________ भूमिका जैन धर्म अहिंसा, सत्य और अनेकान्त का संदेशवाहक है। इसने सदा वे ही मापदण्ड अपनाये हैं, जिनमें जीवन के नैतिक मूल्यों को संवहन करने की शक्ति है। कमल की भाँति निर्लिप्त जीवन जीने की कला सिखाने वाला यही धर्म है। यह जीवन, गणित एवं विज्ञान की विजय का एक चिरस्थायी अद्भुत स्मारक है। इस धर्म-परम्परा को जीवित एवं विशुद्ध बनाये रखने के लिए समय-समय पर अनेक अमृत-पुरुष हुए, जिन्होंने तीर्थंकर और आचार्य-पदस्थ होकर धर्मसंघ को स्थापित एवं संचालित किया। वस्तुतः आचार्यों, मुनियों, साध्वियों, राजाओं, श्रावकों और श्राविकाओं के सामूहिक अथक योगदान के फलस्वरूप ही इस धर्म का अस्तित्व निरन्तर बना रहा। __ सैद्धान्तिक मतभेदों को लेकर अथवा संघीय व्यवस्था को समुचित रूप से चलाने के लिए जैन धर्म में कई भेदोपभेद हुए, अनेक शाखाएँ एवं गच्छ प्रकट हुए। सभी गणों, शाखाओं, कुलों का काफी महिमापूर्ण इतिहास रहा है। धर्म-संघ पर इनका अनुपम प्रभुत्व एवं वर्चस्व भी रहा होगा। इनमें से कतिपय गण, कुल, शाखा तो ऐतिहासिक दृष्टि से अपना गरिमापूर्ण स्थान रखते हैं। खरतरगच्छ श्वेताम्बर परम्परा के कोटिक-गण की वज्र-शाखा से सम्बद्ध है। खरतरगच्छ का प्रवर्तन ___ कोई भी धर्म सदा एक-सा बना रहे, यह कम सम्भव है। प्रत्येक धर्म में ह्रास और विकास हुआ है, क्षीणता और व्यापकता आई है। जैन धर्म ने भी कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। धर्म-संघ के समय-समय पर हुए विच्छेदों ने उसकी एकरूपता तथा एकसूत्रता को भले ही क्षति पहुँचायी हो, लेकिन विभिन्न प्रकार के गण, कुल, शाखा, गच्छ, समुदाय एक-से-एक निःसृत होते हुए भी भगवान् महावीर के पथ से च्युत नहीं हुए और जिन क्षणों में धर्मसंघ पदच्युत होने लगा, उसी समय खरतरगच्छ ने प्रकट होकर धर्मरथ की बागडोर थाम ली। ___ जैन धर्म के लिए यह बात सुप्रसिद्ध है कि यह एक आचार-प्रधान धर्म रहा है। यह तत्त्व-निष्ठा और आचार-निष्ठा को समान महत्त्व देता है। चाहे श्रमण हो या श्रावक अथवा समस्त संघ का प्रतिनिधित्व करने वाला आचार्य हो, सब के लिए तात्त्विक एवं आचारमूलक आदर्श अनुकरणीय रहा। धर्म के निर्देश तो सब के लिए एक-से एवं चिरस्थायी होते हैं। इसलिए धर्म कभी भी उस छूट के मार्ग की अनुमोदना नहीं करता, जो जीवन-मूल्यों को पतनोन्मुख बनाता हो। पर मनुष्य सुविधावादी है। वह अपनी सुविधाओं भूमिका (१) Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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