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द्रव्य-विज्ञान
जैन दर्शन ने भारतीय दार्शनिक क्षेत्र में अपने विशाल साहित्य और तलस्पर्शी चिंतन के कारण एक विशिष्ट स्थान विभूषित किया है। द्रव्य स्वरूप के बारे में जैन दार्शनिकों का जो सूक्ष्म विश्लेषण है, उसे अनेक आधुनिक भौतिकशास्त्र के विज्ञानियों ने कुछ हद तक स्वीकार किया है। इस शोध निबंध में जैन दार्शनिक ग्रन्थों में पाई गई द्रव्यविषयक विवेचना के समग्र चित्र को प्रदर्शित करते हुए तुलनात्मक दृष्टि से इसे प्रकाश में लाने का प्रयास किया
प्रस्तुत शोध निबंध में कुल पाँच अध्याय हैं। वे इस प्रकार है :
(1) प्रथम अध्याय :
भारतीय दर्शनों के संदर्भ में जैन दर्शन की द्रव्य अवधारणा (2) द्वितीय अध्याय
जैन परम्परा मान्य द्रव्य का लक्षण (3) तृतीय अध्याय :
जैन दर्शन के अनुसार आत्मा (4) चतुर्थ अध्याय :
अजीव का स्वरूप (5) पांचवां अध्याय :
उपसंहार
इन अध्यायों में निम्नलिखित विषयों की चर्चा की गई है :
1. भारतीय दर्शनों के संदर्भ में जैन दर्शन की द्रव्य अवधारणा 1-20
. भिन्न भिन्न विचारधाराओं में एकता की अनुगूंज . भारतीय दर्शन की विशेषता - पाश्चात्य दर्शन की विशेषता - दर्शन शब्द की उत्पत्ति, प्रयोग एवं उसका अर्थ- दर्शन शब्द की फिलोसफी से तुलना . दार्शनिक के मापदंड एवं उनकी
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