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________________ के कारण। परमाणु परस्पर संयुक्त होते हैं। परंतु निरंतर नहीं । वह जो परमाणुओं को परस्पर संयुक्त किये रहता है, आकाश है, परंतु यह आकाश परमाणुओं द्वारा निर्मित नहीं है। आकाश नित्य है, सर्वत्र उपस्थित है, इन्द्रियातीत है, जोड़ने तथा पृथक् करने के व्यक्तिगत गुण रखता है। स्वयं देश न होने पर भी समस्त देश को पूर्ण करता है । ' 1 2 पाँचों तत्वों का मिश्रण ही प्रकृति है जो हमारे सामने आती हैं। इनमें आकाश भी एक तत्व है, जिसका गुण एकमात्र शब्द है। ' शब्द गुण का आश्रय दूसरा कोई द्रव्य नहीं है। शब्द आकाश का अनुमापक भी है। आकाश विभु है। जैन दर्शन भी आकाश को सर्वगत, नित्य, व्यापक, रूप, रस, गंध और स्पर्श रहित मानता है, परंतु शब्द को पुद्गल मानता है न कि आकाश का गुण। आज विज्ञान ने रेडियो, टी.वी. आदि द्वारा शब्द तरंगों को पकड़कर स्थानांतरित करके यह सिद्ध भी कर दिया है। सांख्य के अनुसार आकाश: - सांख्य प्रकृति के विकार मात्र को आकाश कहते हैं। प्रकृति से बुद्धि, बुद्धि से अहंकार तथा अहंकार से सोलह गुण - पाँच द्रव्येन्द्रियाँ, पाँच कर्मेन्द्रियाँ, मन, रूप, रस, गंध, स्पर्श और शब्द पैदा होते हैं। रूप, रस, गंध, स्पर्श तथा शब्द इन्हें तन्मात्राएँ भी कहते हैं । * 4 इन पाँच तन्मात्राओं में से शब्द से आकाश की उत्पत्ति होती है । ' प्रत्यक्ष विषय रूप पाँच इन्द्रियों के अनुरूप पाँच तन्मात्राएँ हैं। " ये भौतिक तत्व रूप हैं, परंतु साधारण प्राणियों के दृष्टि का विषय नहीं बनती। इन अदृश्य सारतत्वों का अनुमान दृश्यमान पदार्थों से होता है। तन्मात्राएँ तब तक इन्द्रियों के लिये उत्तेजक नहीं बनतीं जब तक कि वे परमाणुओं का निर्माण करने के लिये एक दूसरे में संयुक्त न हो जाय । तमोगुण निष्क्रिय एवं पुंज के अतिरिक्त सभी लक्षणों से रहित भी होता है। रजोगुण के सहयोग से यह परिवर्तित 1. भारतीय दर्शन: भाग 2 डॉ. राधाकृष्णन पृ. 192 2. न्यायसूत्र 3.1 60.61 3. भारतीय दर्शन : डॉ. एन. के. देवराज पृ. 326 4. षड़दर्शन समुच्चय का. 37.39 5. “स्वरान्नभः” षड्दर्शनसमुच्चय का. 40 एवं शब्द तन्मात्रादाकाश सा. कार्ति मार्त. पृ. 37 6. भारतीय दर्शन भाग दो डा. राधाकृष्णन पृ. 269 164 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002592
Book TitleDravyavigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyutprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1994
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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