________________
भाद्र पद मास के शुक्ल पक्ष की नवमी से रात्रि की वृद्धि और फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की नवमी से उसकी हानि प्रारंभ होती है। रात्रि की वृद्धि दिन की हानि और दिन की वृद्धि रात्रि की हानि होती है। सूर्य के दक्षिणायन में रात्रि की वृद्धि और उत्तरायण में दिन की वृद्धि होती है।'
स्वर्गलोकः-मेरू के शिखर पर स्वर्गलोक है। इसका विस्तार अस्सी हजार योजन है। यहाँ पर त्रायस्त्रिंश देव रहते हैं। इसके चारों विदिशाओं में वज्रपाणि देवों का निवास है।
त्रायस्त्रिंश लोक के मध्य में सुदर्शन नामक नगर है। वह सुवर्णमय है। इसका एक-एक पार्श्व भाग ढाई हजार योजन विस्तृत है। इसके मध्य भाग में इंद्र का अढाई सौ योजन विस्तृत वैजयंत नामक प्रासाद है। नगर के बाहरी भाग में चारों ओर चैत्ररथ, पारुष्य, मिश्र और नंदनवन ये चार वन हैं।' त्रायस्त्रिंश लोक के ऊपर विमानों में देव रहते हैं। कुछ देव मनुष्यों की तरह कामसेवन करते हैं और कुछ क्रमशः आलिंगन, हस्तमिलाप, हसित और दृष्टि द्वारा तृप्ति प्राप्त करते हैं।
बौद्ध और जैन मत में विवेचित लोक की तुलनाः-बौद्धों ने दस लोक माने हैं- नरक, प्रेत, तिर्यक्, मनुष्य और छ: देवलोका' प्रेतों को जैनों ने देवों के अन्तर्गत माना है। (इसका विवेचन जीवास्तिकाय में हम कर आये हैं।) प्रेतलोक को देवयोनि के अन्तर्गत मानने पर नरक, तिर्यक्, मनुष्य और देव चार लोक ही सिद्ध होते हैं। जैन इसे चार गति के रूप में स्वीकार करते हैं।
बौद्धों ने प्रेतयोनि की पृथक् योनि मानकर पाँच योनियाँ स्वीकार की है। ___वैदिक धर्मानुसार लोक वर्णनः-विष्णु पुराण के द्वितीयांश के द्वितीयाध्याय में बताया गया है कि इस पृथ्वी पर जम्बू, लक्ष, शाल्मल, कुश, क्रोंच, शाक
और पुष्कर नाम वाले सात द्वीप हैं। ये सभी चूडी के समान गोलाकार और क्रमशः सात समुद्रों से वेष्टित हैं। इन सभी के मध्य जंबू द्वीप है। इसका 1. अभिधर्मकोष 3.61 2. अभिधर्मकोष 3.65 3.. अभिधर्मकोष 3.66.67 4. अभिधर्मकोष 3.39 5. "नरक प्रेत तिर्यचो मानुषाः षर दिवौकसः" अभिधर्मकोष 3.1 6. "नरकादिस्वनालोका गतयः पंच तेषु ताः" अभिधर्मकोष 3.4
153
Jain Education International 2010_03
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org