SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 131
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जिन्हें स्पाइरल कहते हैं, सूक्ष्म या निगोद वनस्पतिकाय में गर्भित किये जा सकते हैं। प्राणी मात्र में आहारसंज्ञा, निद्रासंज्ञा, भयसंज्ञा और मैथुनसंज्ञा होती है।' सब प्राणियों में वनस्पति भी आ जाती है। वनस्पति कब ज्यादा कम आहार करती है, इसका भगवती में इस प्रकार उल्लेख आता है- वर्षा ऋतु में वनस्पति अधिक आहार करती है। तदनंतर अनुक्रम से शरद, हेमंत, वसंत व ग्रीष्म ऋतु में अल्प से अल्प आहार करती है। ' पृथ्वी, जल और वनस्पति में कृष्ण, नील, कापोत और तेजस् ये चार लेश्याएँ पायी जाती है । इस प्रकार हम देखते हैं कि वनस्पति की प्रत्येक क्रिया जो शताब्दियों पूर्व घोषित की गई थी, वह प्रयोगशाला में प्रमाणित हो चुकी है। इन स्थावर जीवों के स्पर्शन, इन्द्रिय, काय, श्वासोच्छ्वास और आयु ये चार प्राण पाये • जाते हैं। त्रस - जीवों के भेदः - बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय ये स है । " जिनके स्पर्शन और रसनेन्द्रिय हो वे बेइन्द्रिय होते हैं। स्पर्शन, काय, आयु, श्वासोच्छ्वास, रसना और वचन इस प्रकार इनके छः प्राण होते हैं । इन्द्रिय घ्राण इन्द्रिय बढ़ने से सात प्राण होते हैं। चक्षु इन्द्रिय मिलने से चतुरिन्द्रिय के आठ प्राण, श्रोत्रेन्द्रिय मिलने से असंज्ञी पंचेन्द्रिय के नौ एवं मनोबल के मिलाने से संज्ञी पंचेन्द्रिय के दस प्राण होते हैं । ' कौन जीव कितनी इन्द्रिय वाला है: - कृमि, सीप, शंख, गंडोला, अरिष्ट, चन्दनक, शंबुक आदि बेइन्द्रिय जीव हैं। " जूँ, लीख, खटमल, चींटी, इंद्रगोप, दीमक, झींगर, इल्ली आदि तेइन्द्रिय 1. कृषिशास्त्र पृ. 1264. 2. ठाणांग. 4.23. 3. भगवती 7.3.1 4. "एगिंदियाणं.... वणस्सइकाइयाबवि" पत्रवणा 17.2. 1159-61 5. स. सि. 2.13.286. 6. त. सू. 2.14 7. स. सि. 2.14.288. 8. जीवविचार 15 Jain Education International 2010_03 103 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002592
Book TitleDravyavigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyutprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1994
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy