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________________ महासेणकण्ह का वर्णन है। ९. कप्यावडिसिया इसमें भी दस अध्ययन हैं, जिनमें पउम, महापउम, भद्द, सुभद्द, पउमभद्द पउमसेण, पउमगुम्म, नलिणिगुम्म, आणंद व नंदण का वर्णन है। १०. पुफिया इसमें भी दस अध्ययन हैं, जिनमें चंद, सूर, सुक्क, बहुपुत्तिया, पुत्रभद्द गणिभद्द, दत्त, सिव, बल और अणाढिय का वर्णन है। ११. पुप्फचूला इसमें भी दस अध्ययन हैं -- सिरि, हिरि, धिति, कित्ति, बुद्धि, लच्छी इलादेवी, सुरादेवी, रसदेवी और गन्धदेवी। १२. वहिदसाओ इसमें बारह अध्ययन हैं – निसढ़, माअनि, वह, वण्ह, पगता, जुत्ती दसरह, दढरह, महाधणू, सत्तघणू, दसघणू और सयधणू। _ये उपांग सांस्कृतिक दृष्टि से विशेष महत्त्व के हैं। आठवें उपांग से लेक बारहवें उपांग तक को समय रूप में 'निरयावलिओ' भी कहा गया है। मूलसूत्र _ डॉ० शुब्रिग के अनुसार इनमें साधु जीवन के मूलभूत नियमों का उपदेश गर्भित है इसलिए इन्हें मूलसूत्र कहा जाता है। उपांगों के समान मूलसूत्रों क भी उल्लेख प्राचीन आगमों में नहीं मिलता। इनकी मूलसंख्या में भी मतभेद है। कोई इनकी संख्या तीन मानता है - उत्तराध्ययन, आवश्यक और दशवैकालिक और कुछ विद्वानों ने पिण्डनियुक्ति और ओघनियुक्ति को सम्मिलित कर उनके संख्या चार कर दी है। १. उत्तरज्झायण भाषा और विषय की दृष्टि से यह सूत्र प्राचीन माना जाता है। इसकी तुलन पालि त्रिपिटक के सुत्तनिपात, धम्मपद आदि ग्रन्थों से की गई है। इसका अध्ययन आचारांगादि के अध्ययन के बाद किया जाता था। यह भी सम्भव है कि इस रचना उत्तरकाल में हुई हो। उत्तराध्ययन में ३६ अध्ययन है जिनमें नैतिक, सैद्धान्तिव और कथात्मक विषयों का समावेश किया गया है। इनमें कुछ जिनभाषित है। Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002591
Book TitleBharatiya Sanskruti me Jain Dharma ka Aavdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size4 MB
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