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________________ ५७ ऋषभदेव ने शासन-व्यवस्था का विकास किया। उन्होंने कला-विज्ञान और सामाजिक-व्यवस्था का भी सूत्रपात किया। एक लम्बी अवधि तक राज्य करने के बाद उन्होंने अपने सभी पुत्रों को यथा रूप राज्य सौंपकर जिनदीक्षा ग्रहण कर ली। पुत्रों ने भी अपने-अपने राज्य को समृद्ध और सम्पन्न किया। भरत ने छहो खण्ड जीत लिये पर बाहुबली का राज्य अविजित रहा। फलत: दोनों भाइयों के बीच जो मल्लयुद्ध, जलयुद्ध और दृष्टियुद्ध हुए। उन सबसे हमारा परिचय है ही। इन सभी युद्धों में बाहुबली की जीत हुई। इस जीत से बाहुबली ने निरासक्त होकर जिनदीक्षा ग्रहण कर ली, पर उनके मन में अहंकार की पतली-सी परत बनी रही जिससे केवलज्ञान होने में बाधा खड़ी हो गई। भरत को जैसे ही इस तथ्य का पता चला, वे बाहुबली के पास पहुँचे और भलीभांति उन्हें समझाया। फलत: बाहुबली को केवलज्ञान हो गया। भरत ने भी यह सब विचार कर जिनदीक्षा ले ली। तीनों ने यथासमय मोक्ष प्राप्त किया। ऋषभदेव का व्यक्तित्व बड़ा चुम्बकीय था, तलस्पर्शी था। इसलिए समूचा वैदिक और बौद्ध साहित्य उनको अपने-अपने आगम में स्मरण कर रहा है। भरत के नाम पर हमारे देश का नाम भी भारतवर्ष पड़ गया। कल्पसूत्र के द्वितीय खण्ड में स्थविरावली दी गई है। ये स्थविर ऐसे हैं जिन्होंने जैनधर्म की गौरवमयी परम्परा को आगे बढ़ाया है। उनमें अग्रगण्य हैं महावीर के ग्यारह गणधर। उनके नाम हैं— इन्द्रभूति, अग्निभूति, वायुभूति, व्यक्त, सुधर्मा, मण्डित, मौर्यपुत्र, अकम्पित, अचलभ्राता, मेतार्य और प्रभास। इनमें गौतम और सुधर्मा को छोड़कर शेष गणधरों का निर्वाण महावीर के सामने ही हो गया था। इसके बाद गौतम गणधर बारह वर्ष तक जीवित रहे और सुधर्मा भी बारह अथवा बीस वर्ष के बाद परिनिर्वृत हो गये। एक परम्परा गौतम गणधर को प्रथम आचार्य मानती है तो दूसरी परम्परा के अनुसार सुधर्मा ही प्रथम आचार्य थे। कल्पसूत्र की स्थविरावली सुधर्मा से ही प्रारम्भ होती है। सम्भव है, संघ की व्यवस्था का उत्तरदायित्व सुधर्मा से प्रारम्भ हुआ हो। केवली के रूप में सुधर्मा ने ४४ वर्ष तक शासन को सम्हाला और महावीर के चौंसठ वर्ष बाद उनका परिनिर्वाण हो गया। इसके बाद ५ श्रुतकेवली हुए जिनमें प्रभव का ११ वर्ष, शय्यंभव का २३ वर्ष, यशोभद्र का ५० वर्ष, सम्भूतिविजय का ८ वर्ष और भद्रबाहु का १४ वर्ष का शासन रहा। तदनन्तर कल्पसूत्र की स्थविरावली के अनुसार १२ दशपूर्वधर हुए जिनका कुल कार्यकाल ४१४ वर्ष रहा। स्थूलभद्र ४५ वर्ष, महागिरि ३० वर्ष, सुहस्ति ४६ वर्ष, गुणसुन्दर ४४ वर्ष, कालकाचार्य (श्यामाचार्य) ४१ वर्ष, शाण्डिल्य ३८ वर्ष, रेवतीमित्र ३६ वर्ष, आर्य मंगु २० वर्ष, आर्यधर्म २४ वर्ष, भद्रगुप्त ३९ वर्ष, श्रीगुप्त १५ वर्ष Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002590
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unke Das Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Ritual
File Size7 MB
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