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________________ दिया हुआ है १. छ: मासी तप एक २. पाँच दिन कम छ: मासी तप एक ३. चातुर्मासिक तप नौ ४. त्रैमासिक तप दो ५. सार्थ द्वैमासिक तप दो ६. द्वैमासिक तप छ: ७. सार्धमासिक तप दो ८. मासिक तप बारह ९. पाक्षिक तप बहत्तर १०. भद्रप्रतिमा एक दिन की ११. महाभद्रप्रतिमा चार दिन की १२. सर्वतोभद्र प्रतिमा दस दिन की १३. छट्ठभक्त दो सौ उन्नीस १४. अष्टमभक्त बारह १५. पारणा तीन सौ उनचास दिन और १६. दीक्षा का एक दिन। केवलज्ञान की प्राप्ति लगभग साढ़े बारह वर्ष तक तपस्या करते-करते महावीर की आत्मा अनुत्तर दर्शन ज्ञान-चारित्र से विमल होती गयी। तेरहवें वर्षायोग में वे मध्यम पावा से विहार करते हुए जंभियग्राम पहुँचे और वहाँ के बाह्य उद्यान में ध्यानस्थ हो गये। साधना की यह चरमावस्था थी और उसका चरमकाल भी। महावीर की आत्मा अब पूर्णत: निर्मल हो चुकी थी। उनका राग, द्वेष, मोह समूल नष्ट हो चुका था। फलतः वैसाख शुक्ल दशमी को दिन में चतुर्थ प्रहर में ऋजुकूला नदी के तटवर्ती शालवृक्ष के नीचे गोदोहिका आसनकाल में महावीर को कैवल्य की प्राप्ति हो गई। उनके ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय और अन्तराय कर्मों का क्षय हो गया। अब महावीर अर्हन्त, सर्वज्ञ और सर्वदर्शी हो गये। वे समस्त लोक की समस्त पर्यायों को एक साथ ___Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002590
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unke Das Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Ritual
File Size7 MB
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