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________________ का प्रताप रहा है। अरिष्टनेमि के विवाह का आयोजन भोजवंशी उग्रसेन की पुत्री राजमती के साथ हुआ, पर विवाह के लिए वध्य पशुओं को देखकर उनके मन में वैराग्य उत्पन्न हो गया और वे जिन दीक्षा लेकर तपस्या करने निकल पड़े। राजमती ने भी बाद में दीक्षा ले ली। अरिष्टनेमि ने कठोर तपस्या करते हुए केवल ज्ञान प्राप्त किया और फिर सिद्ध हो गये। उनकी यह भविष्यवाणी अक्षरश: सिद्ध हुई कि यादवों की उद्दण्डता के कारण द्वैपायन मुनि के क्रोध से द्वारिका नगरी बारहवें वर्ष में जल जाएगी। तीर्थङ्कर पार्श्वनाथ तीर्थङ्कर पार्श्वनाथ तेईसवें तीर्थङ्कर के रूप में इतिहास में विश्रुत हैं। उनके दस पूर्वजन्मों का वर्णन मिलता है। उनका जन्म इक्ष्वाकुवंशीय उग्रवंश में हुआ था। उनके पिता अश्वसेन और माता ब्राह्मी या वामा थीं। अश्वसेन काशी के राजा थे। वे कदाचित् अविवाहित ही रहे। उन्होंने संसार छोड़कर जिनदीक्षा ले ली और अनेक उपसर्ग सहन करते हुए निर्वाण प्राप्त किया। उनकी शासन देवी पद्मावती रही हैं। पालिपिटक में पार्श्वनाथ के चातुर्याम का उल्लेख अनेक बार हुआ है। नाग, द्रविड आदि जातियों में उनकी मान्यता असन्दिग्ध है। उनका निर्वाण सम्मेदशिखर पर हुआ था। अत: वे निर्विवाद रूप से ऐतिहासिक व्यक्तित्व के रूप में स्वीकार किये जाते हैं। तीर्थङ्कर महावीर पार्श्वनाथ के २५० वर्ष बाद तीर्थङ्कर महावीर हुए। जीव की जन्म परम्परा तो अनादि रही है, पर जिस जन्म में जीव की जीवन-दृष्टि में साधारण-सा परिवर्तन आया, उसी जन्म से इस शृंखला का प्रारम्भ करते हैं। महावीर का पूर्व जन्म इस दृष्टि से पुरुरवा से प्रारम्भ होता है जो मारीचि, जटिल, विश्वभूति, नयसार, महाशुकदेव, त्रिपृष्ठ, सिंह आदि जन्मों में घूमता हुआ वैशाली के राजकुमार महावीर के रूप में जन्म स्थिर हुआ। वर्धमान महावीर और जैनधर्म तीर्थङ्कर महावीर भारतीय संस्कृति के अनन्य उपासक और ऐतिहासिक महापुरुष हुए है। वे जैन परम्परा के चौबीसवें तीर्थङ्कर माने जाते हैं। उन्होंने हिंसा, पुरुषार्थ और समता का पाठ देकर जो जन-कल्याण किया है वह अपने आपमें अनूठा है। उनकी वैचारिक संस्कृति को श्रमण संस्कृति कहा जाता है जिसमें समता और श्रमवादी विचारधारा समन्वित है। भारत सरकार से सम्बद्ध एनसीआरटी के पाठ्यक्रम में तीर्थङ्कर महावीर के सन्दर्भ में जो पाठ दिया गया है वह इतिहास-परम्परा से अनभिज्ञता को सूचित करता है। उसी Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002590
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unke Das Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Ritual
File Size7 MB
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