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________________ ४. ६. ७. ८. १०. (५५), पूर्ववर्ती तीर्थङ्करों का आकलन ( ५५-५६ ), तीर्थङ्कर ऋषभदेव (५५), आचरण ज्ञान के ऊपर है (५८), अन्तगडसूत्र (६०) | क्रोध का अभाव ही क्षमा है स्वानुभूति और धर्म (६४), क्षमा : अर्थ और प्रतिपत्ति (६५), क्रोधः कारण और प्रतिफल (६६), क्रोध को दूर करने का उपाय (६७), क्षमा के उदाहरण (६८)। जीवन की सरलता ही मृदुल है संकल्प और जागरण (७१), मार्दव का अर्थ (७२), अहङ्कार : प्रकृति और परिणाम (७३), अहङ्कार से मुक्त होने के उपाय (७४), मृदुता के उदाहरण (७५)। जीवन की निष्कपटता ही ऋजुता है। Jain Education International 2010_03 अर्थ और स्वरूप (७७), माया और प्रतिक्रिया (७७), प्रकृति और स्वभाव (७८), श्रेयार्थ की ऋजुता । जीवन की निर्मलता ही शुचि है अर्थ और प्रतिपत्ति (८२), स्वरूप (८२), शुचिता का विस्तार (८३), विरोधी भाव लोभ (८३) । सत्य : साधना की ओर बढ़ता पदचाप अर्थ और प्रतिपत्ति (८८), साधन और स्वभाव (८८), चिन्तन की सार्थकता (८९), सत्य के प्रकार (९०), सांसारिक सत्य (९१), अनन्त सम्भावनाओं से भरा सत्य (९२) । मन पर नकेल लगाना ही संयम है। संयम की डोर (९४), मन पर नकेल लगाना स्वानुभूतिपूर्वक (९४), संयम और अनुशासन (९५), संयम : निषेध से विधेय की ओर (९७) । स्वस्थ होना ही उत्तम तप है तप और आध्यात्मिक स्वास्थ्य (१००), तप और साधक (१०१), तप एक ऊर्जा है (१०२), तप के प्रकार - बाह्यतप (१०४), आभ्यन्तर तप (१०७), तप का आधार चारित्रिक विशुद्धि (११० ) । For Private & Personal Use Only ix ६४-७० ७१-७६ ७७-८१ ८२-८७ ८८-९३ ९४-९९ १००-१११ www.jainelibrary.org
SR No.002590
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unke Das Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Ritual
File Size7 MB
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