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विरोध अस्तित्व का सार्वभौम नियम है । ऐसा कोई भी अस्तित्व नहीं, जिसमें विरोधी युगल एक साथ न रहते हों। एक भाषा में अस्तित्व को विरोधी युगलों का समवाय कहा जा सकता है । अनेकान्त ने इस सत्य का दर्शन किया । विरोधी युगलों के सह-अस्तित्व को भाषा अथवा परिभाषा दी । उनमें रहे हुए समन्वय के सूत्र खोजे । अनेकान्त जैन दर्शन का व्याख्या-सूत्र बन गया । अनेकान्त को समझे बिना जैन दर्शन को नहीं समझा जा सकता । निरपेक्ष और सापेक्ष दृष्टिकोण के समन्वय के सन्दर्भ में प्रस्तुत पुस्तक को पढ़ा जाएगा । दृष्टियां स्पष्ट होंगी तथा जैन दर्शन को नये संदर्भ में समझने का अवसर मिलेगा।
Jain Education International 2010_03
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