________________
१२ / जैन दर्शन और अनेकान्त
(दो-दो पदों में अवतरित) होता है• जीव और अजीव स और स्थावर
• सयोनिक और अयोनिक
• आयु सहित और आयु रहित • इन्द्रिय सहित और इन्द्रिय रहित वेद सहित और वेद रहित
• रूप सहित और रूप रहित
• पुद्गल सहित और पुद्गल रहित
• संसार समापत्रक और असंसार समापन्नक
शाश्वत और अशाश्वत
आकाश और नो- आकाश
• धर्म और अधर्म
• बंध और मोक्ष
• पुण्य और पाप
• आस्रव और संवर
• वेदना और निर्जरा'
त्रयात्मक अस्तित्व
चेतन और अचेतन -- इन दोनों द्रव्यों का अस्तित्व त्रयात्मक है। उसके तीन अंग हैं
१. धौव्य, २. उत्पाद, ३. व्यय ।
अस्तिकाय द्रव्य का धौव्य अंश है। पांच द्रव्य अस्तिकाय वाले हैं
१. धर्मास्तिकाय
२. अधर्मास्तिकाय
३. आकाशास्तिकाय
४. पुद्गलास्तिकाय ५. जीवास्तिकाय
१. ठाणं २/१
Jain Education International 2010_03
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org