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१२८ । जैन दर्शन और अनेकान्त भी नींद बहुत आती है तो वहां दूसरा नियम खोजना होगा। वह नियम होगा-कर्म। निश्चित ही उस व्यक्ति के दर्शनावरणीय कर्म की अधिकता है। उसका विपाक बहुत होता है, इसलिए वह नींद में चला जाता है। कुछ लोग बहुत सघन निद्रा में चले जाते हैं। इतनी सघन निद्रा, जिसे स्त्यानधि निद्रा कहा जाता है। जिस नींद में आदमी अकरणीय काम कर लेता है, असंभावित काम कर लेता है और उसे पता ही नहीं चलता। ऐसी होती है स्त्यानधि नींद । नींद में उठकर चला जाता है, किलोमीटरों तक चला जाता है, किसी का दरवाजा खोल आता है, चोरी कर आता है, किसी को मार आता है, कहीं से कोई चीज उठाकर ले आता है और वापस आकर सो जाता है। उसे पता ही नहीं चलता कि उसने कुछ किया है । ऐसी घटनाएं आज भी कहीं-कहीं मिलती हैं। समाचार-पत्रों में ऐसे विवरण प्रकाशित होते हैं। इतनी प्रगाढ़ निद्रा के कारण को शरीर में नहीं खोजा जा सकता। इसका कारण है—कर्म । निदान से परे का सच
बहुत बार बीमारी की अवस्था के और इस प्रकार नींद की अवस्था के शारीरिक कारण भी खोजे जाते हैं। किन्तु कुछ भी उपलब्ध नहीं होता। कुछ लोग कहते हैं-डॉक्टरों के द्वारा सारे निदान करा लिये, निदान में बिल्कुल बीमारी नहीं आ रही है और मैं बहुत भयंकर बीमारी भुगत रहा हूं। इसका क्या कारण है? उपकरण नहीं बता पा रहे हैं कि यह व्यक्ति बीमार है और वह व्यक्ति भयंकर दुःख भोग रहा है। वहां केवल शरीर को ही नियम मानकर, सत्य को, वास्तविकता को, नहीं खोजा जा सकता। वहां शरीर से आगे खोजना होता है। उस बीमारी का कारण हैअसातवेदनीय कर्म । वह कर्म के कारण भुगत रहा है । बीमारी का कोई लक्षण प्रकट नहीं हो रहा है किन्तु असातवेदनीय का प्रबल उदय हो गया इसलिए वह कष्ट भोग रहा है । यह सत्य की खोज का बहुत व्यापक दृष्टिकोण बनता है । जैनदर्शन ने इस दृष्टिकोण को बहुत व्यापक बनाया है और इस व्यापक दृष्टिकोण से सत्य की बहुत समीक्षा की है, मीमांसा की है। अमीरी का एक कारण है : क्षेत्र .. जीवन से जुड़ा हुआ एक संदर्भ है—गरीबी और अमीरी। आदमी गरीब क्यों बनता है, आदमी अमीर क्यों बनता है? यह एक आम धारणा है कि जिसने अच्छा कर्म किया था वह अमीर बन गया और जिसने बुरा कर्म किया था वह गरीब बन गया । यह एक सच्चाई हो सकती है, एक नियम हो सकता है। किन्तु इसे व्यापक
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