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________________ आपका प्रश्न गंभीरता पूर्वक विचारणीय है । मंत्र-विद्या, योग-विद्या या शास्त्रों का ज्ञान इन तीनों चीजों की परम्परा भी बहुत महत्त्वपूर्ण है । स्वर शास्त्र के रचयिता श्री चिदानंद विजयजी म.सा. एवं पिछली शताब्दि में हुए महात्माओं के काल में बहुत से चमत्कार हुए हैं - ऐसा जानने में आया है । जब तक मंत्र सिद्धि की सम्यक् परम्परा चलती थी तब तक मंत्र सिद्धि तथा उसके चमत्कार होते ही रहते थे। परन्तु एक काल में यति परम्परा उत्तरोत्तर शीथिल होती चले जाने से संवेगी साधुओं ने विकृत हुई इस परम्परा को स्वीकार नहीं किया... परिणाम स्वरूप चली आ रही मंत्र परम्परा तथा उसकी सिद्धियों के मार्ग लगभग बंद होते चले गये। • क्या यह मार्ग पुनः शुरू नहीं हो सकता ? कोई भी चीज एकान्त से अश्क्य है, ऐसा नहीं मानना चाहिये । इस काल में भी कितने ही परिश्रमी एवं आत्मार्थी आत्माएँ इस के लिए प्रयत्नशील है । साथ ही साथ ऐसे आत्मार्थी आत्माओं को मिलती सिद्धि तथा प्रसिद्धि से आकर्षित हो कर कितने ही लोगों का मंत्र सिद्धि के मिथ्या उपयोग करने का मन भी होता है । यह कार्य बहुत ही खतरनाक है । अगर आज भी संनिष्ठ प्रयत्न करने में आये तो मंत्र साधना की परम्परा फिर से प्राणवान बनाई जा सकती है। क्या ऐसी मंत्र साधना द्वारा साधु-वर्ग संयम से पतित नहीं हो जाते ? तथा उन्हें संयम से पतित होने का भय नहीं होता है ? तो मंत्र साधना को महत्त्व क्यों देना चाहिए ? सम्यक् गुरू आज्ञा बिना एवं सम्यक् आत्म जागृति के बिना मंत्र आराधना में लग जाये तो पतन होना संभव है । परन्तु पतन के भय को आगे कर आराधना ही नहीं करनी ऐसा मान ले तो संयम से पतित होने के भय से दीक्षा भी अंगीकार नहीं कर पायेंगे । मात्र मंत्र साधना ही पतन का हेतु नहीं है । किसी भी प्रकार की ज्यादा प्रसिद्धि, हद से ज्यादा मान -सम्मान एवं भाव-भक्ति भी पतन का कारण बन सकती है । परन्तु ऐसे भय से भयभीत हो कर भक्ति-मार्ग को तो बंद नहीं किया जा सकता । ठीक इसी प्रकार मंत्र साधना के दोषों को जरूर दूर करना चाहिए तथा इस परम्परा की पुनः स्थापना करनी चाहिए एवं इस परम्परा से प्राप्त सिद्धियों को संभाल कर रखनी चाहिए । शास्त्र में शासन के आठ प्रभावकों में से एक प्रभावक रूप में मंत्रवादी का भी समावेश करने में आया है । अतः मंत्र साधना को महत्त्व अवश्य देना चाहिए । आज के काल में भी मंत्र सिद्धि द्वारा शासनकी प्रभावना के समुज्जवल योग की सम्भावना है । सहकार की उदार भावना से अगर परस्पर महामुनि भगवंत मंत्र साधना एवं उसके रहस्यों का आपस में विनिमय (आदान-प्रदान) करें तो मंत्र साधना की कितनी ही परम्पराओं को पुनः जागृत किया जा सकता है । क्या ऐसी संभावना है कि मंत्रो की परम्पराओं का अनुसंधान हो जाने से पहले के काल जैसा मंत्र युग फिर आये और उसके द्वारा अद्भूत शासन प्रभावना हो ? भगवान महावीर के निर्वाण को २५०० वर्ष पूर्ण होने के बाद शासन का उदित-उदित पूजा सत्कार होगा.. ऐसा शास्त्रों में कहा गया है । आचार्य जिनप्रभसूरिजी ने भी लिखा है कि अच्छा काल आयेगा और मंत्रों द्वारा देव-देवीयों को प्रत्यक्ष किये जायेंगे... अतः मंत्र-विद्या का युग पुनः आ सकता है । परन्तु अवसर्पिणी काल (काल चक्र का उतरता हुआ काल) होने से, कदाचित् थोड़ा न अवश्य कम देखने में आये... फिर भी मंत्र सिद्धि का फल स्पष्ट रूप से अनुभव किया जा सकेगा । अभी भी प्रयत्न एवं पुण्याई के प्रमाण से मंत्र सिद्धि होते देखे गये है । आशा रखें कि अधिष्ठायक देवों को जागृत रखने का अपना प्रयत्न सकल हो; अधिष्ठायक देव भी जागृतिपूर्वक शासन प्रभावना में प्रयत्नशील बने तथा मिथ्यात्वी आत्माओं को सम्यक-दर्शन की तरफ ले जायें; सम्यकदृष्टी आत्माओं की सम्यक्-दर्शन की धारणा को और मजबूत बनायें । सम्यक् दर्शनको मजबूती से धारक आत्माओं की संयम प्राप्ति की अनुकूलताएँ बढ़े । संयम प्राप्ति की अनुकूलता वाली आत्मायें शीघ्र संयम को प्राप्त करें । संयम प्राप्त आत्मायें अप्रमत चारित्रधारी बन कर निकटभवि बनें । स्व एवं पर का निष्काम भावसे हित साधे । तथा “जैनम् जयति शासनम्" का भव्य नाद जगायें । साधु भगवंत मंत्र सिद्ध कर सकते हैं, क्या ऐसे श्रावक भी मंत्र सिद्ध करके शासन की प्रभावना कर सकते हैं ? प्रस्तुत भक्तामर की २८ महिमा कथाओं का हम अवलोकन करें तो जरूर हम समझ सकेंगे कि श्रावकों ने भी सुन्दर रीति X XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX रहस्य-दर्शन रहस्य-दर्शन २२५) २२५ Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002588
Book TitleBhaktamara Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajyashsuri
PublisherJain Dharm Fund Pedhi Bharuch
Publication Year1997
Total Pages436
LanguageSanskrit, English, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size50 MB
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