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________________ तापसी को एक ही खीर के पात्र से भोजन कराना, दूसरा... सूर्य की किरणों के आलम्बन से द्रुत-वेग से अष्टापद - पर्वत पर पहुँचना जैसे अविश्वसनीय एवं चमत्कारिक तथा अकल्पनीय घटनाएँ शास्त्रों में स्वर्णाक्षरों से सुशोभित है । परमात्मा महावीरने गोशालक को तेजोलेश्या की विधी बताई थी, परन्तु उसके दुरुपयोग से खुद गोशालक पर तेजोलेश्या का जब कुप्रभाव पड़ने लगा तब भगवान महावीर ने शीत लेश्या के प्रयोग से गोशालक को बचाया। यह परमात्मा के शासन से शुरू हुई लब्धि एवं शक्ति के सफल प्रयोग का जीवंत उदाहरण है। जिन महान आत्माओं द्वारा मंत्र एवं मंत्र शक्ति के प्रयोग से अनेक सफल एवं आश्चर्यपूर्ण चमत्कारिक प्रयोग किए गए उन महान विभूतियों के नाम हैं... आचार्य पादलिप्तसूरीजी, आचार्य खपूटाचार्य, आचार्य यशोभद्राचार्य, आचार्य नागार्जुनाचार्य, आचार्य रोहिताचार्य, आचार्य भद्रबाहुसूरिजी आचार्य सिद्धसेन दिवाकर सूरिजी आचार्य स्थूलभद्रसूरिजी आचार्य वज्रस्वामीजी, आचार्य मानदेव सूरिजी जैसे और भी अनेक आचार्य भगवंतों ने मंत्रों की सिद्धि कर शासन की प्रभावना की है। सही मायने में देखें तो प्रत्येक जैनाचार्य गुरु भगवंत मंत्र-सिद्धि के लिए अनुष्ठान करते हैं एवं मंत्रों के आश्चर्य जनक प्रभाव से जिन शासन एवं अहिंसा संयम एवं तप की महिमा एवं गरिमा बढाते हैं.. तथा अपने भक्तवर्ग को भक्तों के कर्मानुसार उन्हें आधि-व्याधि से मुक्त कर मंगल मय मोक्ष मार्ग की ओर ले जाते हैं । अपने उपदेश को मानने वाली जनता को आत्मिक - परमानंद की अनुभूति हो ऐसा आयोजन करते हैं । यहाँ प्रत्येक आचार्य भगवंतों के खुद की आत्म-शक्ति, लब्धि-विद्या एवं मंत्रों के प्रयोग से हुए हैरत अंगेज चमत्कारों की सूचि उपलब्ध कराना शक्य नहीं है फिर भी कई उल्लेखनीय कार्यों एवं आचार्य भगवंतों की विगत संक्षिप्त में यहाँ दी जा रही है । वराह मिहिर नाम के महान ज्योतिषी व्यन्तर बनकर जैन संघ पर भारी उपद्रव कर रहे थे... उनके निवारण के लिए श्री भद्रबाहु सूरिजीने “श्री उवसग्गहरं स्तोत्र" की रचना कर श्री संघ की रक्षा की । आचार्य वज्रस्वामीजी ने "आचारांग सूत्र" में से "आकाशगामिनी विद्या सिद्ध कर विमान द्वारा पुष्प लाकर बौद्ध धर्म के राजा को प्रभावित किया। पू. आचार्य भगवंत श्री मानदेव सूरिजीने "श्री लघु-शांति स्तव" जैसे प्रभाविक स्तोत्र की रचना कर "मारी रोग" का निवारण किया। पू. आचार्य श्री रत्नप्रभसूरिजी ने एक ही मुहूर्त में दो अलग-अलग गाँवों में एक ही साथ प्रतिष्ठा की पू. आचार्य भगवंत पादलिप्तसूरिजी अपनी चमत्कारिक शक्ति से प्रति दिन आकाश मार्ग से जाकर पाँच तीथों की यात्रा किया करते थे। पू. आचार्य वप्पभट्टसूरिजी की जवरदस्त मंत्र शक्ति से श्री सरस्वती को विवश बन कर भी आना पड़ा था। पूज्य सिद्धसेन दिवाकरसूरीश्वरजी के द्वारा रचित श्री कल्याण मंदिर स्तोत्र के प्रभाव से शिवलिंग में से पार्श्वनाथ प्रभु की प्रतिमा प्रगट हुई और आपश्रीने सरसों के दानें फेंक कर उसमें से सैनिक प्रकट किये थे। पू. आचार्य देवेन्द्रसूरीजी की मंत्र शक्ति द्वारा कांजीवरम् शहर से पार्श्वनाथ की प्रतिमा को गुजरात के सेरिसा गाँव में लाने का उल्लेख है । • पाठांतर रहस्य • - ●● नदी बहती रहती है बहते बहते उसके रूप बदलते जाते है ठीक वैसी ही स्थिति स्तोत्र या ग्रंथो की होती है, और समय के साथ साथ उनके पाठ के पाठांतर होते जाते है... ऐसे पाठांतरों का जब तक एक जैसा भाव बनता जाता है, तब तक तो ठीक है परंतु जब कभी मूल पाठ के भावांतर (भावो में अंतर) का सर्जन होता है... तब कभी कभी मूल ग्रंथ के कर्ता लेखक या कवि के आशय से दूर कर देते हैं... इसी लिए ऐसे पाठांतरों को बढावा या प्रोत्साहन नहीं देना चाहिए .... कई बार ऐसे पाठांतरों से सांप्रदायिक मतभेदों का मार्ग प्रशस्त होता है । एवं उसे बढ़ावा मिलता है । इस लिए ऐसे विवादास्पद पाठांतरों पर नियंत्रण (काबू ) रखना अति आवश्यक है । यहाँ पर भी श्री भक्तामर स्तोत्र के पाठांतरों की और विद्वान पाठांतरों का ध्यान आकर्षित करने के लिए प्रसिद्ध पाठांतरों की टीका एवं उसके रहस्यों को समझने की कोशीश करने में आई है। गाथा संख्या रहस्य में हमने देखा की चार गाथाओं भक्तामर स्तोत्र में बढ जाने से इस निर्विवाद महा काव्य विवादों के घेरे में आ गया है । भविष्य में इस तरह की पुनरावृति न हो और प्रसिद्ध ग्रंथ, पाठ या काव्य ऐसे पाठांतरों के सर्जन से विवादस्पद न बनें, इस हेतु हमें जागृत रहना होगा । २१८ Jain Education International 2010_04 रहस्य-दर्शन For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002588
Book TitleBhaktamara Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajyashsuri
PublisherJain Dharm Fund Pedhi Bharuch
Publication Year1997
Total Pages436
LanguageSanskrit, English, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size50 MB
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