________________
• "शिव शालिनी रहस्य".
• प्रभाव कथा-११ : प्रप्तत कथा लक्ष्मण श्रेष्ठी की है । श्रेष्ठी ने अपने गुरू-भगवंत के पास से आम्नायों के साथ भक्तामरस्तोत्र सीखा था । . परा ने प्रसन्न होकर श्रेष्ठि को ऐसा चमत्कारिक मणि दिया कि जिसको आकाश में उछालने से यह मणि आकाश में चन्द्र जैसा प्रकाश देता है । विज्ञान विद्यार्थी ऐसी महिमा कथाओं से सुंदर मार्गदर्शन प्राप्त कर सकते है । लक्ष्मण श्रेष्ठीने मणि के प्रभाव से प्रकाश कर राजा को जिताया । स्तोत्र एवं मंत्र को आम्नायों के साथ प्राप्त करना अति महत्त्वपूर्ण है । गुरू-भगवंत से ही प्राप्त करना जरूरी ही नहीं; अनिवार्य भी है । इस श्लोक के एक रूपांतर में यह भी बताया गया हैाश में रात्रि में स्थिर किये गए मणि को वापस लेने के लिए श्रेष्ठीने इसी १९वें श्लोक का ध्यान किया था । अतः पुनः
यण की शक्ति भी इस श्लोक में मानी गई है । इस श्लोक के सातवें, चौतीसवें, छत्तीसवें, सेंतीसवें तथा अडतीसवें अक्षरों को क्रम से पढे तो "शिवशालिनी" पढने में आता है । जिसका अर्थ अशिव को दूर करने वाला होता है।
• “रात्रि पाठ रहस्य".
• प्रभाव कथा-१२ : यह कथा नागपुरनगर के राजा महिपति की है । राजा के प्रश्नों का सही जवाब पू. विजयसेन सूरिजी महाराज ने दिया था । आचार्य भगवंत रात्रि-वेला में श्री भक्तामर स्तोत्र का पाठ करते थे । आप श्री द्वारा २०वीं गाथा का पाठ करते वक्त देवी-चक्रेश्वरी ने प्रकट होकर उनको सब प्रश्नों के उत्तर जानने की विद्या प्रदान की थी । दैवी-तत्त्व प्रसन्न होकर क्या कर सकते है ? क्या दे सकते हैं ? यह अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं।
."श्री चंद्रप्रभस्वामी आराधना रहस्य".
.प्रभाव कथा-१३ : यह कथा “परकाय-प्रवेश विद्या" के जानकार आचार्य जीवदेव सूरिजी की है । आप श्री ने भक्तामरस्तोत्र की (२१वीं गाथा) इस एक ही गाथा का आम्नायों सहित जाप कर मनोवांछित रूपों को प्रकट करने की विद्या प्राप्त की । इस विद्या के द्वारा उन्होने शिव, ब्रह्मा, विष्ण, सूर्य, गणेश एवं स्कंद इत्यादि के रूप को प्रकट किया था । इस गाथा में भी श्री चन्द्रप्रभस्वामी का उल्लेख है । एवं उनके अचिंत्य प्रभाव को भी माना गया हैं ।
."सूरि मंत्र-सिद्धि रहस्य". •प्रभाव कथा-१४ : श्री भक्तामर स्तोत्र की यह चौदहवीं कथा विद्या-सिद्ध आर्य खपूटाचार्यजी की हैं । इन आचार्य भगवंत का पुण्य-नाम स्मरण भी महान-सिद्धि को प्रदान करने वाला हैं । इस गाथा का आराध्य-मंत्र सूरि-मंत्र ही कहने में आया है । आर्य खपूटाचार्यजी भी सूरि-मंत्र सिद्ध किए हुए महात्मा थे । आपश्री ने भी भक्तामर स्तोत्र के इस श्लोक की साधना की है । ऐसा उल्लेख भी हमें अपनी भावना की वृद्धि में प्रेरित करने वाला हैं | आचार्यश्री ने अपनी महान साधना से गुड़ शस्त्र पत्तन मंदिर के यक्ष की मूर्ति एवं दो महान कुंड़ीयों को अपने पीछे-पीछे चलाने का चमत्कार किया था । मंत्र-चमत्कार के द्वारा आपश्री ने जिन-शासन के प्रभाव को फैलाने में चार-चाँद लगाये थे ।
."दैवी-दुनिया रहस्य" • प्रभाव कथा-१५ : यह कथा भी आर्य खपूटाचार्यजी की महान मंत्र-सिद्धि की जयगाथा हैं । भक्तामर स्तोत्र की तेवीसवीं गाथा की साधना कर आचार्यश्री ने श्री देवी-चक्रेश्वरी से दुष्ट व्यतंर को वशीभूत करने का वरदान प्राप्त किया था । दुष्ट एवं हिंसाप्रिय चंडिका देवी ने आचार्यश्री के गले में नाखून चुभाया । परन्तु दिव्य-साधना के एवं चक्रेश्वरी-देवी के प्रभाव से ये नाखून का प्रहार चंडिका देवी के खुद के कपाल में ही हुआ । इस प्रकार के वर्णन से हमें दैवी-दुनिया के बारे में विशेष-ज्ञान प्राप्त होता हैं। जैनाचार्यों की यह महानता रही हैं कि वे अपनी साधना एवं सद्उपदेश के प्रभाव से हिंसक देव-देवीयों को भी अहिंसक बनाते हैं | ऐसी ही एक हिंसा-प्रिय चंडिका-देवी को अहिंसक वना कर आर्य खपूटाचार्यजी ने “जैन जयति शासनम्' का जयनाद किया था ।
."चिंतामणी मंत्र रहस्य". •प्रभाव कथा-१६ : शौर्यपुर नगर के जितशत्रु राजा की यह कथा हैं । उसके अंतःपुर में सब रानीयाँ भूत-प्रेत-पिशाच आदि के असर से कुप्रभावित हो गई थी । आचार्य श्री शांतिसूरिजी के अभिमंत्रित-जल का जल-पान एवं आँखों मे जल छिंटकने से भूत
रहस्य दर्शन
१९७)
Jain Education International 2010_04
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org