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• "त्रिभुवन स्वामिनी रहस्य"
प्रभाव कथा ७ आचार्य प्रवर गुणाकर सूरिजी ने इन गाथाओं का दो विद्याओं के साथ सम्बन्ध जोड़ा है। एक अष्ट विद्या के अंतर्गत विषापहारिणी विद्या एवं दूसरी त्रिभुवन स्वामिनी विद्या । वैसे गाथाओं के अन्दर इन विद्याओं की शोध करना मुश्किल है परन्तु "त्रिभुवन" पद इस गाथा के दूसरे पद में है। प्रस्तुत कथा में पाटण नगर की डाहीवेन जो परिणय सूत्र में बंध कर अपने ससुराल भरूच शहर में आती है । डाहीवेन कलिकाल सर्वज्ञ पूज्य हेमचन्द्राचार्यजी को अपने परम गुरु मानती थी। डाहीवेन को देवी चक्रेश्वरी ने प्रत्यक्ष एवं प्रसन्न होकर विष हर हार, दिव्य कुसुम-माला एवं पू. हेमचन्द्राचार्यजी की पादुका प्रदान की। यह गाथा स्वतः ही विषापहारी महा-विद्या स्वरूप हैं, अतः देवी ने इस गाथा से ही विष हर हार प्रदान किया इन दोनों का एक ही साथ मेल करना चाहिए । ग्रन्थकार फरमाते हैं कि “जिनाः तुल्य गुणाः, तुल्य फलदाः सर्वे सब जिनेश्वर भगवंत समान गुण वाले होते है, एवं समान फल प्रदान करने वाले होते हैं। डाहीवेन की धार्मिक भक्ति से प्रसन्न श्री चक्रेश्वरीदेवी डाही को दिव्य-हार प्रदान करती है, जिसके मध्य में रही हुई मणि में पार्श्व प्रभु का बिंब भी था । डाहीबेन ने देवी द्वारा प्रदान किया गया दिव्य हार श्री मुनीसुव्रतस्वामी के कंठ में पहनाया अतः चमत्कार रूप वह हार भगवान मुनिसुव्रत स्वामी के कंठ में ज्यों का त्यों रह गया । डाहीबेन श्री भक्तामर स्तोत्र का पाठ श्रद्धा एवं भाव-पूर्वक त्रिकाल निरन्तर करती थी । भरूच तीर्थ के इतिहास में इस कथा का प्रमुख स्थान है ।
"चरणोदक रहस्य'
प्रभाव कथा-८ प्रस्तुत कथा में श्री भक्तामर स्तोत्र के प्रभा से महामुनि मल्लपि के चरणों के प्रक्षाल की महिमा दर्शाई गई है । श्री भक्तामर स्तोत्र का प्रारंभ भी परमात्मा के दो चरणों में नमस्कार से ही हुआ है। ऐसे चरण जल से कौशल के राजा सज्जन का दुष्ट योगीनी का दोष भी दूर हो गया । पू. गुणसेनसूरिजी को पन्द्रहवें श्लोक का पाठ करते वक्त कोई देवी ने मलर्षिमुनि के प्रभाव से अवगत कराया। मल्लर्षि मुनि को श्री चक्रेश्वरी एवं अन्य देवीयों का दिव्याशीर्वाद प्राप्त था। महा-मुनि के पाद जल से कई देवी-देवता प्रभावित हुए थे। श्री चक्रेश्वरी देवी मात्र भक्तामर स्तोत्र की अधिष्ठायिका है, ऐसी बात नहीं है, परन्तु हर तपो-निष्ठ साधु-भ -भगवंत की अधिष्ठायिका के रूप में भी महान जिन शासन की सेवा करती है । इस गाथा में बंध - मोक्षिणी एवं स्वप्नविद्या जैसी दो महा-विद्याओं का समावेश है ।
• "प्रतिबोध रहस्य" •
पुत्र
• प्रभाव कथा-९ सोलहवीं एवं सत्रहवीं गाथा में अनुक्रम से श्री संपादिनी विद्या एवं पर- विद्या उच्छेदिनी विद्या का समावेश है । इस महिमा कथा में जिन शासन के महान कारुणिक महापुरूष का इतिहास वर्णित है । जिन शासन के परम श्रावक सत्य-संगर के को प्रतिबोध करने के लिए आचार्य धर्म- देव सूरिजी ने अथक प्रयत्न किया, परन्तु अंत में उक्त दो गाथाओं का ध्यान कर देवी चक्रेश्वरी को नास्तिक ऐसे पुत्र को साक्षात् नरक दर्शन कराने का आग्रह किया। तव देवीने आचार्य भगवंत एवं राज-पुत्र को साक्षात् नरक दर्शन करा कर, राज-पुत्र को धर्म से प्रतिबोधित कर जैन-धर्म में स्थिर किया। ये कथा भव्य आत्माओं के बोध के लिए महान जैनाचार्यो के अथक परिश्रम को दर्शाने वाली है।
• "भरूच तीर्थ जिर्णोद्वार रहस्य" •
प्रभाव कथा - १० : परमार्हत महाराजा कुमारपाल जिनकी शक्ति पर गौरव अनुभव करते थे, ऐसे महा-मंत्री अंवड़ का यहाँ पर जिक्र कहते है। महामंत्री राज्य कार्यों में लीन होते हुए भी भक्तामर स्तोत्र का नियमित पाठ किया करते थे। यह संभवित है कि उन्होंने कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेमचंद्राचार्यजी जैसे गुरू-भगवंत के पास से इस महान -स्तोत्र एवं इसके अठारहवें श्लोक का रहस्य प्राप्त किया हो ! जो भी हो इस श्लोक की आराधना का प्रभाव आखिर भरूच के " शकुनिका - विहार" तीर्थ के जिर्णोद्धार तक पहुँचा था। महामंत्रीने अपने मातुश्री की प्रेरणा से इस तीर्थ के उद्धार का महान कार्य किया। इस कथा के विविध पाठांतर एवं रूपांतर भी मिले हैं, परन्तु श्री चक्रेश्वरी देवीने महामंत्री को चन्द्रप्रभस्वामी की प्रतिमा अर्पित की, यह उल्लेख महत्त्वपूर्ण है। प्राप्त उल्लेखों से पता चलता है कि अंवड़ - मंत्री की मातुश्रीने जब श्री - संघ पर आपत्ति आई तब समस्त श्री संघ के साथ सामूहिक रूप से १८ वीं गाथा का पाठ किया एवं अंवड़-मंत्री ने भी इस गाथा का ध्यान किया जिससे शासन- देव प्रत्यक्ष हुए ऐसा जानने में आया है । परन्तु कौन से देवता प्रत्यक्ष हुए इसका कहीं भी उल्लेख नहीं है। श्री ऋषभदेव भगवान के यक्ष श्री गोमुख यक्ष हो सकते है, ऐसी कल्पना कर सकते है । इस गाथा में दोष-निर्नाशिनी महा-विद्या का समावेश है। अंबड-मंत्री को जब रात्रि काल में भय आया तो उन्होंने रात्रि में भी इस गाया का ध्यान किया ऐसा शास्त्रों में वर्णित है।
रहस्य- दर्शन
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