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स्वप्नों के लिए अन्यत्र ऐसा भी कहा गया है कि अशुभ स्वप्न हो तो सो जाना चाहिए और शुभ स्वप्न हो तो स्वप्न के फल की दृढता से कामना करके देव-गुरु धर्म की स्तवना करें । अपने इष्टमंत्र का अथवा इसी मंत्र का जाप करें ।
• मंत्र - १० "बंधमोक्षिणी विद्या" “ॐ ह्रीं जिणाणं, ॐ ह्रीँ ओहि जिणाणं, ॐ ही परमोहि जिणाणं, ॐ हाँ अणंतोहि जिणाणं, ॐ ह्रीं सामन्न केवलीणं, ॐ हाँ भवत्थ केवलीणं, ॐ हीं अभवत्थ केवलीणं नमः स्वाहा ।।' – भक्तामर स्तोत्र की पंद्रहवीं गाथा की माला फेरने के बाद इस मंत्र का एक सौ आठ दफे जाप करने से भूत-प्रेत-डाकण-शाकिनी आदि का उपद्रव दूर होते हैं।
• मंत्र - ११ "श्री सम्पादिनी विद्या" ॐ ही बीय बुद्धीणं, ॐ हाँ कुट्टबुद्धीणं, ॐ ह्रीं संभिन्नसोआणं, ॐ हाँ अक्खीणमहाणसीणं ॐ ही सव्वलद्धीणं नमः स्वाहा ।।" - इस मंत्र के १०८ बार जाप करने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है । लेकिन इस मंत्र जाप के पूर्व सोलहवी गाथा की माला फेरनी चाहिए ऐसा विधान है।
• मंत्र - १२ “परविद्योच्छेदिनी विद्या" "ॐ हीं उग्गतवचरणाणं, ॐ हीं दित्ततवाणं, ॐ ही तत्ततवाणं, ॐ ही पडिमापडिवन्नाणं नमःस्वाहा ।।' – सत्रहवीं गाथा की माला फेरनी और इस मंत्र का एक सौ आठ दफे जाप करने से और मोरपीछी से झाडा देने से दुसरे व्यक्तिने किये हुओ अनिष्ट विद्या-प्रयोग की असर नहीं होती है । भूत-प्रेत का भय दूर होता है । शीत ज्वर, उष्ण ज्वर और अनेक प्रकार के ज्वर का नाश होता है । इस अभिमंत्रित जल के सींचन से मरकी आदि का उपद्रव दूर होता है।
• मंत्र - १३ "दोषनिर्नाशिनी विद्या"
"ॐ ह्रीं जंघाचरणाणं, ॐ ही विज्जाचरणाणं, ॐ ही वेउव्वियइड्डिपत्ताणं, ॐ हीं आगासगामीणं नमः स्वाहा ।।" - इस मंत्र के जाप के पूर्व अठारहवीं गाथा की माला फेरनी चाहिए और उसके बाद इस विद्या का जाप (१०८)एक सौ आठ दफे करना चाहिए । रविवार के दिन इन मंत्राक्षरो को यक्षकर्दम से भोजपत्र पर लिखकर तानिज़ में डालकर अपने पास रखें । कोई भी कामणटुमण नजर की असर नहीं होती है । दिन ब दिन कीर्ति और प्रभाव में और भी वृद्धि होती है ।
• मंत्र - १४ “अशिवोपशमनी विद्या" “ॐ ही मणपज्जवनाणीणं, ॐ ह्रीं सीयलेसाणं, ॐ हाँ तेउलेसाणं, ॐ ही आसीविस भावणाणं, ॐ ही दिट्ठीविस भावणाणं, ॐ ह्रीं चारण भावणाणं, ॐ ह्रीं महासुमिण भावणाणं, ॐ ह्रीँ तेयग्गि निसग्गाणं नमः स्वाहा ।।" - श्री भक्तामर स्तोत्र की उन्नीसवी गाथा की माला फेरनी । इस विद्या का (१०८) एक सौ आठ दफे जाप करने से सभी उपद्रवों का नाश होता है ।
• मंत्र - १५ “श्री चिंतामणी मंत्र" “ॐ ह्रीँ श्रीँ अहँ नमिउण पास विसहर वसह जिण फुलिंग ॐ ह्रीं श्री अर्ह नमः ।।" इस मंत्र के जाप से भय का नाश होता है।
श्री चिंतामणी मंत्र भी सूरिमंत्र समान महान मंत्र है | उनके अनेक महान कल्प है । जिज्ञासुओं का वे विशेष कल्प पढ़ लेने चाहिए पर अच्छा तो यह है कि सदगुरु से आम्नाय संप्रदाय मिला लें ।
श्री उवसग्गहरं स्तोत्र और नमिऊण स्तोत्र का यह मंत्र परम आधार है | पू. आ.देव मानतुंग सूरिजी. म.ने भी इस मंत्र को सिद्ध किया था एसा पढने में आया है । महान गुरुभगवंतो से महान मंत्र पाकर धन्य बने !
• मंत्र - १६ “महालक्ष्मी यंत्र" "ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं महालक्ष्म्यै नमः ।।"- इस मंत्र के जाप के पूर्व भक्तामर स्तोत्र की छब्बीसवीं गाथा की माला फेरनी चाहिए; वाद में जाप करना चाहिए।
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रहस्य-दर्शन XXXXXXXXXXXXXXXXXX
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