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[ • अति प्राचीन अति प्रभाविक मंत्र.
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भक्तामर के यंत्र-साधन विभाग में प्रत्येक गाथा संबंधित मंत्र दिये गये हैं । ये सब मंत्रो से भी पुराणे मंत्र पू. गुणाकरसूरीश्वरजी म.सा.ने अपनी टीका में दिये है । श्री भक्तामर स्तोत्र के संबंध में प्रसिद्ध होनेवाली हिंदी पुस्तिका में हमने कहीं भी इस मंत्रो को देखा नहीं है । अतः यहाँ इन मंत्र को प्रकाशित करना उचित समझा है । गुजराती भाषी महानुभावों से भी अनुरोध है कि वे इस विभाग में से इस मंत्रो के विधानों को पढ लें । पू. आ. देव गुणाकरसूरीश्वरजी म.सा.ने चुंवालीस ४४ गाथाओं पर आधारित कुछ उन्नीस (१९) मंत्र दिये हैं । आठ भयों का निवारण करने के लिए गाथा नंबर चौंतीस (३४) से (४२) विआलीस तक की गाथाओं को ही मंत्र माना है । अतः उन गाथाओं के मंत्र की आवश्यक्ता ही नहीं है । उन्नीस (१९) मंत्र में से कुछ मंत्र का विधान हमने “आराधना रहस्य" में विस्तार से दिया है । फिर भी वे सारे मंत्र यहाँ पुनः एक दफे और प्रकाशित कर रहे हैं ।
पू. गुणाकरसूरीश्वरजी म.सा. के भक्तामर स्तोत्र के सारे मंत्र प्राचीन मंत्र है । अतः अन्य ग्रंथो में भी उस मंत्रो का विशेष विधान - विशेष कल्प मिलता है । आपने तो टीका में बहुत संक्षेप से ही फल श्रुति का वर्णन किया है। फिर भी अन्य ग्रंथो से अनुसंधान करके यहाँ हो सके इतना विस्तृत वर्णन दिया है ।
• मंत्र-१ “सर्वविपद्हारी महामंत्र" ___“ॐ नमो वृषभनाथाय, मृत्युञ्जयाय, सर्वजीवशरणाय, परमपुरुषाय, चतुर्वेदाननाय, अष्टादशदोषरहिताय, अजरामराय सर्वज्ञाय, सर्वदर्शिने, सर्वदेवाय, अष्टमहाप्रातिहार्यचत्रिंशद-तिशयसहिताय, श्रीसमवसरणे द्वादशपर्षद्वेष्टिताय, दानसमर्थाय, ग्रह - नाग - भूत - यक्ष - राक्षस वशङ्कराय, सर्वशान्तिकराय, मम शिवं कुरू कुरू स्वाहा ।।''
- इस मंत्र को भक्तामर स्तोत्र के जाप्य मंत्र के रूप में इस ग्रंथ में दिया है । इस मंत्र के जाप करने के पूर्व श्री भक्तामरस्तोत्र की पहली एवं दुसरी दोनों गाथा की एक माला फेरनी चाहिए। बाद में तीनों ही संध्या में यह मंत्र एक सो आठ दफे गिनना चाहिए । सवा लाख मंत्र पूर्ण हो, वहाँ तक यह क्रम जारी रखना चाहिए । गाथा क्रमांक चार का भी मंत्र यह ही है ।
• मंत्र - २ "जयप्रद मंत्र" ॐ हाँ ही ऋषभशान्ति धृति कीर्ति कान्ति बुद्धि लक्ष्मी ही अप्रतिचक्रे ! फट् विचक्रायै स्वाहा । शान्त्युपशान्तिसर्वकार्यकरी भव देवि ! अपराजिते ॐ ठः ठः स्वाहा ।।" - (१) यह मंत्र का जाप राज्यदरबार में सफलता पाने के लिए, (२) वादी के साथ वाद में सफलता पाने हेतु.. (३) दुश्मन का सैन्य आ गया हो, तो विजय पाने के लिए किया जाता है । इस मंत्र की विधि भी आगे के मंत्र जैसी समझ लेनी चाहिए । यह सातवी गाथा का मंत्र होने से सातवी गाथा की माला फेरनी चाहिए।
• मंत्र - ३ "सर्वरक्षाकर यंत्र"
"ॐ ह्रीं श्रीचक्रेश्वरी मम रक्षां कुरू कुरू स्वाहा ।।"
यह मंत्र बहुत प्रभावशाली मंत्र प्रतीत होता है । स्तोत्र अधिष्ठायिका से सीधा ही संबंधित मंत्र है । उसका जाप भी नौंवी गाथा के एकसो आठ जापपूर्वक ही करना चाहिए । पू. उपाध्याय मेघविजयजी महाराजने “आँ” को श्री चक्रेश्वरी देवी का वीज माना है । संयोग से इस नौवीं गाथा से तीनबार "औं' बीज पढ़ा जा सकता है ।
• मंत्र - ४ "सर्व सिद्धिकर मंत्र"
“ॐ ह्रीं नमो अरिहंताणं सिद्धाणं सूरीणं उवज्झायाणं साहूपां मम ऋद्धि - वृद्धि समीहितं कुरू कुरू स्वाहा ।।" __ इस मंत्र को तो हमने समस्त भक्तामर स्तोत्र का ही मंत्र मान लिया है। अतः मंत्र का महत्त्व तो समझ में आ ही जा सकता है। इस मंत्र के अन्य कल्पो में त्रिकाल सामायिक में यह जाप करने का विधान है । पूरा सामायिक ही यह मंत्र गिनते रहना चाहिए। कम से कम ईक्कीस दिन तक इस प्रकार से जाप करना चाहिए । वाद में प्रतिदिन बत्तीस दफे जाप करें तो (१) लक्ष्मी प्राप्ति,
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