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भक्तामर यंत्र - ३७
Bhaktamara Yantra - 37
रक्तेक्षणं समदकोकिलकण्ठनीलं " ही अहँणमो खीरासवीणं "
श्री
श्री
श्री
स्त्वन्नामनागदमनी हृदि यस्य पुंसः ॥३७॥
मनोवाञ्छितं कुरु कुरु स्वाहा।”
ग्लौं ग्लौं ग्लौं ग्लौं ग्लौं
श्री
(क्ली ली क्लीं क्ली क्लीं
श्री
“नमो श्रीँ श्री श्रू श्रः जलदेवि कमले क्रोधोद्धतं फणिनमुत्फणमापतन्तम्।
न ही श्री आदिदेवाय ही
नमः
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ऋद्धि-ॐ हाँ अर्ह णमो खीरासवीणं । मंत्र-ॐ नमो श्राँ श्रीँ यूँ श्रः जलदेवि कमले पद्मदनिवासिनि पद्मोपरिसंस्थिते सिद्धिं देहि
मनोवांछितं कुरु कुरु स्वाहा । प्रभाव-सर्प के जहर का भय उपस्थित होता नहीं है ।
Removing fear of snake-poison.
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