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भक्तामर यंत्र - ३६
Bhaktamara Yantra - 36
कल्पान्तकालपवनोद्धतवह्निकल्पं “ने ही अहँ णमो कायबलीणं।"
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त्वन्नामकीर्तनजलं शमयत्यशेषम् ॥३६॥
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“र्ने ह्रीं श्रीं क्लीं ह्रां ह्री दावानलं ज्वलितमुज्जवलमुत्फुलिङ्गम्।
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ऋद्धि-ॐ हीं अहँ णमो कायबलीणं । मंत्र-ॐ ह्रीं श्रीं क्लीँ हाँ हाँ अग्निमुपशमनं शान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ।
प्रभाव-अग्नि का संकट/भय दूर होता है । Removing fear and danger of fire.
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